होलाष्टक अउरी होलिकादहन

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हिंदू धर्म में होलाष्टक के दिन अशुभ मानल गईल बा। होलाष्टक के शुरुआत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि से होला। एकर समापन फाल्गुन के पूर्णिमा के होला अउरी एही दिन होलिका दहन के परम्परा बा।  होलाष्टक शुभ काहे ना मानल जाला? एकरा संबंध में दू गो पौराणिक कथा बा जे भक्त प्रह्लाद अउरी कामदेव से जुड़ल बा।

होलाष्टक होली से पहिले के 8 दिन के कहल जाला। अपशगुन के कारण एमे मांगलिक कार्य कईल वर्जित होला। एह वर्ष होलाष्टक 02 मार्च से प्रारंभ भइल, जे 09 मार्च यानी  आज होलिका दहन तक रही। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष के अष्टमी से लेके पूर्णिमा ​तिथि तक होलाष्टक मानल जाला। आज होलिका दहन के बाद अगला दिन 10 मार्च के रंग के त्योहार होली धूमधाम से मनावल जाई। होलाष्टक के 8 दिन में मांगलिक कार्य कइला के निषेध होला। यानी एह समय मांगलिक कार्य कईल अशुभ मानल जाला।

आईं जानल जाव कि भक्त प्रह्लाद अउरी कामदेव के साथ अइसन का भइल क्या रहे  कि होलाष्टक के अशुभ माने लागल गईल।

होलाष्टक में भक्त प्रह्लाद के देहल गईल यातना

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप अपना बेटा प्रह्लाद के भगवान श्रीहरि विष्णु के भक्ति से दूर करे खातिर अनेक प्रकार के यातना देहलन । भक्त प्रह्लाद के फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष के अष्टमी से लेकर पूर्णिमा ​तिथि तक अनेक प्रकार के यातना देहल गईल, उनुका के मारे के भी प्रयास कईल गईल । लेकिन भगवान विष्णु हर बार भक्त प्रहलाद के प्राण के रक्षा कइनीं।

आठवें दिन यानी फाल्गुन पूर्णिमा के रात हिरण्यकश्यप भक्त प्रह्लाद के मारे खातिर आपन बहिन होलिका के अपना बेटा  के साथे अग्नि में बैठावे के योजना बनवलन, ताकि प्रहलाद जलके मर जास अउरी भगवान विष्णु के भक्ति से मुक्ति मिले। उनुका राज्य में केहू भगवान विष्णु के नाम न ले।

योजना के अनुसार, होलिका भक्त प्रह्लाद के अपना गोदी में लेके अग्नि में बइठ गईली । होलिका आपन दिव्य वस्त्र पहिनले रहली, ताकि अग्नि से उनुकर बाल भी बांका न हो, लेकिन भगवान विष्णु के अइसन कृपा भइल कि प्रह्लाद बच गइलन अउरी होलिका जर के मर गईली । एही कारण से हर वर्ष होली से पूर्व रात के होलिका दहन होला। होलिका दहन से पहले के आठ दिन के होलाष्टक कहल जाला अउरी ई अशुभ मानल जाला।

भगवान शिव कइनीं कामदेव के भस्म

होलाष्टक के अशुभ माने के एक कारण अउरी मानल जाला कि भगवान शिव फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि के कामदेव के  भस्म कर देले रहनीं। कामदेव के अपराध ई रहल कि कामदेव भगवान शिव के तपस्या भंग करे के प्रयास कइलन। कामदेव के पत्नी रति जब उनुकर कइल अपराध खातिर शिवजी से रो रोके क्षमा मंगली, तब भोलेनाथ कामदेव के  पुनर्जीवन देवे के आश्वासन देहनीं।

होलाष्टक में ना करेके ई कार्य

  1. विवाह : होली से पूर्व के 8 दिन में भूलके भी विवाह न कईल जाला। ई समय शुभ नाहीं मानल जाला।
  2. नामकरण एवं मुंडन संस्कार : होलाष्टक के समय में आपन लइकन के नामकरण चाहे मुंडन संस्कार करावे से बचे के चाहीं ।
  3. भवन निर्माण : होलाष्टक के समय में कवनों भी भवन के निर्माण कार्य प्रारंभ न कईल जाला। होली के बाद नया भवन के निर्माण के शुभारंभ करावे के चाहीं।
  4. हवन-यज्ञ : होलाष्टक में कवनों यज्ञ चाहे हवन अनुष्ठान करे के सोचs तानीं त होली बाद कराइं। एह काल में हवन करावला से ओकर पूर्ण फल प्राप्त ना होला।
  5. नौकरी: होलाष्टक के समय नया नौकरी ज्वॉइन करे से बचे के चाहीं। अगर होली के बाद के समय मिल जाए तो अच्छा होई। ना त कवनो ज्योतिषाचार्य से मुहूर्त देखा लेवे के चाहीं।
  6. भवन, वाहन आदि के खरीदारी: संभव हो त होलाष्टक के समय में बचे के चाहीं। शगुन के तौर पर भी रुपया आदि ना देवे के चाहीं।

होलाष्टक में पूजा-अर्चना के मनाही ना होला

होलाष्टक के समय में अपशकुन के कारण मांगलिक कार्य पर रोक होला। हालांकि होलाष्टक में भगवान के पूजा-अर्चना कइल जाला। एह समय में रउआ अपना ईष्ट देव के पूजा-अर्चना, भजन, आरती आदि कर सकेनीं, एसे रउआ शुभ फल के  प्राप्ति होई।

प्रह्लाद के अहित करे के प्रयास में होलिका त स्वयं जलके भस्म हो गइली अउरी प्रहलाद हंसत-खिलखिलात अग्नि से बाहर आ गइलन। एही स्मृति में आज होलिका दहन मनावल जाला। होली पर्व मनावत बेरा एही वास्तविक भाव के ध्यान में रखके होली दहन करे के चाहीं। अपना मन में चलत नकारात्मक भाव के होली दहन में डाल देवे के चाहीं। तबे रउआ  सकारात्मकता सोच से आगे बढ़त भक्त प्रहलाद जइसन ईश कृपा के पात्र बन पावेम।

 

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