महान विभूतियों की प्रेम-पाती

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Happy Valentine's Day 2020
Happy Valentine’s Day 2020

आज वैलेंटाइन डे है…..दुनिया भर मे हर साल 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे मनाया जाता है, जिसे लोग प्यार का त्यौहार मानकर सेलिब्रेट करते हैं। इसे एक रोम के एक पादरी संत वैलेंटाइन के नाम पर मनाया जाता है। बताया जाता है कि संत वैलेंटाइन दुनिया में प्यार को बढ़ावा देने में विश्वास रखते थे, लेकिन रोम में एक राजा क्लाउडियस को उनकी ये बात पंसद नहीं थी । उसने संत वैलेंटाईन को उनकी बात ना मानने के जुर्म में 14 फरवरी को फांसी पर चढ़ा दिया गया। भारत में भी लोग अपने पार्टनर को तोहफे, चॉकलेट आदि देकर प्यार का जश्न मनाते हैं ।
दुनिया भर में कई महान लोगों के जीवन में प्यार की बयार भरपूर बही। कई महान विभूतियों ने अपने प्यार का इजहार खतों के जरिए किया है। कुछ महान विभूतियों के खत हम आपके लिए ले कर आए हैं जो उन्होंने अपने वैलेंटाईन के लिए लिखे थे।

नेपोलियन का पत्र डिजायरी के नाम

नेपोलियन: जिसने प्यार और युद्ध दोनों में मैदान जीत। असंभव शब्द उसके शब्द कोश में नहीं था। लेकिन नेपोलियन जैसा आदमी भी प्यार के बंधन से जुड़ा था। उसने अपनी वैलेंटाईन डिजायरी के नाम बहुत खुबसूरत खत लिखा था….

प्रिये,
मैं एविग्नान बहुत ही उदास मन लेकर पहुंचा हूं क्योंकि इतने दिनों तक मुझे तुमसे अलग रहना पड़ा है। यह यात्रा मुझे बहुत ही कठिन लगी है। मेरी प्यारी अकसर अपने प्रिय को याद करती होगी और जैसा कि उसने वादा किया है, वह उसे प्यार करती रहेगी। बस, यही आस मेरे दु:ख को कम कर सकती है और मेरी स्थिति को थोड़ा बेहतर बना देती है। मुझे तुम्हारा कोई भी पत्र पेरिस पहुंचने से पहले नहीं मिल पाएगा। यह बात मुझे प्रेरित करेगी कि मैं और तेज भागूं और वहां पहुंचकर देखूं कि तुम्हारे समाचार मेरा इंतजार कर रहे हैं। ड्यूरेंस में बाढ़ आ जाने के कारण मैं इस जगह पर जल्दी नहीं पहुंच सका। कल शाम तक मैं लियंस पहुंच जाऊंगा। मेरी प्यारी! मेरी रानी, विदा। मुझे कभी भी भूलना मत। हमेशा उसे प्यार करती रहना जो जीवन-भर के लिए तुम्हारा है।

तुम्हारा
नेपोलियन

चेखव का पत्र लीडिया के नाम

चेखव, जिनका पूरा नाम अंतोन चेखव था, दुनिया के सबसे बड़े कहानीकारों में से एक रहे। चेखव ने शोषित जनता के हक में अपनी कलम को तलवार बना लिया। लेकिन प्यार के इजहार में भी चेखव की लेखनी कम नहीं थी। उन्होंने अपनी प्रेमिका लीडिया के नाम जो खत लिखा वह काफी चर्चित है…

27 मार्च 1894, याल्टा

मधुर लीका,

पत्र के लिए धन्यवाद! हालांकि तुम यह कहकर मुझे डराना चाहती हो कि तुम जल्दी ही मर जाओगी और मुझे ताना मारती हो कि मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, फिर भी तुम्हें धन्यवाद! मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम मरोगी नहीं और कोई तुम्हें छोड़ेगा नहीं। मैं याल्टा में हूं और खूब मजे कर रहा हूं। नाटकों की रिहर्सल देखने और खूबसूरत फूलों से भरे बागीचों में अपना ज्यादातर वक्त बिताता हूं। भरपेट, मनपसंद खाना खाता हूं और संगीत सुनता हूं। प्यारी लीका याल्टा में बसंत देखना अलग ही अनुभव है, लेकिन एक ख्याल मेरा साथ कभी नहीं छोड़ता कि मुझे लिखना चाहिए…मुझे लिखना चाहिए….मुझे लिखना चाहिए…तुम्हारी याद मुझे आती है लेकिन मैं उदास नहीं हूं। तुम अगर पत्र डालकर मेरी आदत बिगाड़ना चाहो तो पत्र मिलिखोव भेजो। मैं यहां के बाद वहीं पहुंचूंगा और वादा करता हूं कि तुम्हारे पत्रों का जवाब दूंगा। मैं तुम्हारे दोनों हाथों को चूमता हूं।

तुम्हारा
अंतोन चेखव

विष्णु प्रभाकर का पत्र उनकी पत्नी सुशीला के नाम

विष्णु प्रभाकर जी, भारतीय वाग्मिता और अस्मिता को व्यंजित करने के लिये प्रसिद्ध विष्णु प्रभाकर जी ने कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रा-वृत्तांत और कविता आदि प्रमुख विधाओं में अपनी बहुमूल्य रचनाएँ की हैं। वह जीवन-पर्यन्त पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्य साधना में लीन रहे थे। प्रभाकर जी की लेखनी से अपनी पत्नी के लिखे खतों में जो मिठास झलकती है, वह दुर्लभ है। विष्णु प्रभाकर की पत्नी जब विवाह के बाद पहली बार मायके गई थीं, तब उन्होंने बड़ा ही अद्भुत खत लिखा था…यह एक दस्तावेज बन गया है…

मेरी रानी,

तुम अपने घर पहुंच गयी होगी। तुम्हें रह-रह कर अपने मां-बाप, अपनी बहन से मिलने की खुशी हो रही गोगी। लेकिन मेरी रानी, मेरा जी भर आ रहा है। आंसू रास्ता देख रहे हैं। इस सूने आंगन में मैं अकेला बैठा हूं। ग्यारह दिन में घर की क्या हालत हुई है, वह देखते ही बनती है। कमरे में एक-एक अंगुल गर्दा जमा है। पुस्तकें निराश्रित पत्नी सी अलस उदास जहां-तहां बिखरी हैं। अभी-अभी कपड़े संभालकर तुम्हें ख़त लिखने बैठा हूं, परंतु कलम चलती ही नहीं। दो शब्द लिखता हूं और मन उमर पड़ता है काश…. कि तुम मेरे कंधे पर सिर रक्खे बैठी होती और मै लिखता चला जाता… पृष्ठ पर पृष्ठ। प्रिये, मैं चाहता हूं कि तुम्हें भूल जाऊं। समझूं तुम बहुत बदसूरत, फूहड़ और शरारती लड़की हो। मेरा तुम्हारा कोई संबंध नहीं. लेकिन विद्रोह तो और भी आसक्ति पैदा करता है। तब क्या करूं ? मुझे डर लगता है। मुझे उबार लो। मेरे पत्रों को फाड़ना मत। विदा…. बहुत सारे प्यार के साथ…
तुम अगर बना सको तो

तुम्हारा ही
विष्णु

गणेशशंकर विद्यार्थी का खत अपनी पत्नी के नाम

गणेशशंकर विद्यार्थी, भारतीय पत्रकारिता के स्तंभ पुरुष रहे। उन्होंने समाज की हर बुराई के खिलाफ कलम चलाई ही, अफनी कलम के जरिए अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई भी काफी जोर शोर से लड़ी। अपनी पत्नी को लिखा उनका मार्मिक खत काफी चर्चित है…

मेरी परम प्या री प्रकाश,

कल तुम्हापरा पत्र प्राप्ती हुआ। तुमने जो कुछ लिखा है, वहे बिल्कुंल ठीक है। माफी माँगने से अच्छार यह है कि मौत हो जाये। तुम विश्वा स रखो कि मैं बेइज्तीे का काम नहीं करूँगा। तुमने जो साहस दिलाया उसमें मेरे जी को बहुत बल मिला। मुझे तुम्हाारी और बच्चोंन की बहुत चिंता है। परंतु तुम्हालरा हृदय कितना अच्छाऔ और ऊँचा है, उससे मेरे मन को बहुत संतोष हो रहा है। ईश्वुर तुम्हानरे मन को दृढ़ रखे। अगर तुम दृढ़ रहोगी तो मेरा मन कभी न डिगेगा। मैं तुमसे कोई बात छिपाना नहीं चाहता।

मैं खुशी से तैयार हूँ। जो मुसीबतें आयेंगी मैं उन्हें हंसते-हंसते झेल लूंगा, लेकिन मेरी हिम्मरत को कायम रखने के लिए यह आवश्य क है कि तुम अपना जी न गिरने दो। हाँ, माखनलालजी के साथ मैं उनके घर जा रहा हूँ। होली वहीं करूँगा। होली के बाद दूज या तीज को मैं कानपुर पहुंचूंगा और उसी दिन दोपहर तक मैं अपने को पुलिस के हाथों में दूंगा। मैं सीधे ही पुलिस के हाथों में अपने को दे देता, मगर एक बार तुम लोगों को देख लेना धर्म समझता हूं। देखो, ईश्व,र और धर्म पर विश्वा स रखो। आज कष्टल के दिन सिर पर हैं। कल सुख के दिन भी आवेंगे। धर्म के लिए सहे जाने वाले कष्टि के दिनों के बाद जो दिन आवेंगे, वे परमात्मा की कृपा से अच्छेे सुख के दिन होंगे।
हरि, कृष्णट, विमला और ओंकार को प्याधर।

तुम्हाारा
गणेशशंकर

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