“पंचायत” के बहाने

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आपन गांव से जुड़ल लोग खातिर पानी के एगो बून्द -‘पंचायत ‘

आज के बेरा में सभे जहाँ गाड़ी-घोड़ा, धुंआ-धक्कड़ के गंध अउरी हल्लागुली से दूर घर के चारदीवारी के भीतर बन्हाइल बा ओहमे मोबाइल, लैपटॉप अउरी टीबीए नु बा जे सबके बाहर के दुनिआ से भेंट-मुलाकात करावsता। आज जवन सुस्ताए के दौर चलता एहि में कुछु याद आवेला त ऊ ह आपन गाँव के घर-दुआर अउरी लोग। आज इहो लालसा के पूर्ति घर में बइठले-बइठले हो गइल ह “पंचायत” के चलते। अमेज़न प्राइम वीडियो पर एह घरी एगो सीरीज आइल ह ‘पंचायत’, जवन दीपक कुमार मिश्रा जी के निर्देशन में निर्देशित भइल बा, अउरी एकर कहानी चन्दन कुमार लिखले बानी। कवनो फिलिम के जियत – जागत बनावे में कलाकार लोग के बहुत बड़का हाथ होला। एहींगा एहू सीरीज में जान डाले खातिर नीना गुप्ता (मंजू देवी ), रघुवीर यादव (बृजभूषण दुबे ), जीतेन्द्र कुमार (अभिषेक त्रिपाठी), चन्दन राय (विकास) अउरी फैज़ल मालिक (प्रह्लाद ) के बहुत बड़ हाथ बा। एह सीरीज के श्री गणेश नौकरी जइसन दुविधा के साथे होता, अभिषेक त्रिपाठी के उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के फुलेरा गाँव में 20,000 रुपया के सरकारी नौकरी लागल ह। एह बेरोजगारी के दौर में नौकरी ले लिहल एतना आसान कहा बा उहो सरकरी नौकरी ! सहर में रहेवाला अभिषेक त्रिपाठी के तनिको मन न रहे कि कउनो गाँव में रह के नौकरी करस लेकिन एगो दोस्त के समझवला-बुझवाला पर ऊ गाँव में जा के नौकरी करे खातिर तैयार हो गइलन। फुलेरा गाँव के पंचायत सचिव के रूप में उनकर चुनाव भइल रहे। 20,000 रुपया के नौकरी कउनो ख़राब नाहिये कहाई। सीरीज में गाँव के सीन सुरु होखे से पहिले गाँव के सहर से जोड़े वाला कच्चा सड़क ,पक्का सड़क से बायां बगल ढुलत देखावल गइल बा। ओह सीन के देख के दर्शक लोग ओहि रास्ता धइले सीधा अपना गांवे पहुँच जाई। हर ऊ व्यक्ति जेकरा अंतर्मन में ओकर गाँव बसल होइ ऊ आदमी जरूर अपना गाँव जाए आला रोड पर पहुँच गइल होइ । फुलेरा गाँव के पंचायत ऑफिस में जवन ताला लागल रहे ऊ हिसाब से पता चलाsता कि पंचायत ऑफिस में बहुत दिन से केहू झांकिओ ना परले रहे। ई उहे बात भइल जैसे ई कोरोना के समय में कउनो कपड़ा के दोकान पर लागल ताला।
पंचायत के प्रधान त मंजू देवी रहली लेकिन गाँव में मेहरारू लोग के पदवी खाली नाम भर के होला बाकी उsलोग के कुल काम त मरद लोग ही करेला | मरदे -मानुष के कहला पर कमवा होला आ मेहरारू लोग के खाली दस्तख़त अउरी अंगूठा लगावे के जिम्मेदारी रहेला। गाँव के होसियारी के चिन्हा गाँव में के भुतहा गाछ ह, उहे गाछ जेकरा के अपना पीछे भागत केहू नइखे देखले, बाकिर सुनले सभे केहू बा। केहू के धम-धम के आवाज सुनाइल बा त केहू के झड़ -झड़ के आवाज सुनाइल बा । 14 बरिस पहिले जनमल ऊ भुतहा गाछ के जड़ गाँव के मास्टर साहेब हवन। “ऊ का है न कि ऊ एक रात चिलम फूँक लिए थें आ ओहिके नशा में उनकरा गाछ भुइयां से एक फ़ीट ऊपर उनकर पीछे भागत लउकल रहे ओकरा बाद त जे भइल की माट साहेब आपन पोंछिटा उठा के भागा तारे की ना …..सीधा गांवे आ के रुकलन!” विकास के जवन बोले बतिआवे के तरीका बा ऊ अइसन बुझाता जैसे अपना घर तर के केहू चिन्हल बोलावेला | बृजभूषण जी जेंगा बात-बात में लौकी सेवा दे तारन अइसन कुल शहर में कहा होला। मिल -बाँट के खाए के अइसन पहाड़ा सहर के लोग कहा पढ़ेला। शहर के लोग के उहे हाल बा “सर-गल जाई गोतीआ न खाई..”
परमेस्वर के बेटी के बियाह में नयका दामाद अउरी उनकर यार सन के मिठाई के डिब्बा खातिर नौटंकी, रूसा-फूली त गाँव के हीं याद परावे ला। शहर के हाय-हेलो के फैशन में ई कुल्हि कहाँ भेंटाई ! जेंगन गाँव में फुफ्फा आ दामाद लोग रूस-फूल जाला लोग अउरी ऊ लोग के मनावे खातिर गाँव परिवार के लोग जुट जाला। घर-परिवार वाला लोग के लगे दोसर कउनो उपाय भी त न रहेला!एह सीरीज में अइसन-अइसन सीन बा जेमे रउआ बहुते हंसी भी आई आ अगर रउआ अपना गाँव घर से बेसी लगाव बा त भाउक भी हो सकेनी। एही से जुड़ल एगो चन्दन दास के गीत बा जवन हमरा याद आ रहल बा -“मेरा गाँव जाने कहाँ खो गया है !”
एह सीरीज के बारे में कुछ लोग के ईहो कहनाम बा कि कहीं-कहीं कहानी तनी धीरे चलs तिया लेकिन गांव-देहात से जुड़ल लोग के एक ठहराव में भी बरगद के गाछ के नीचे बइठे वाला सुकून मिलता। एह सीरीज के कहानी बहुत बड़-बड़ सीख दे जाता उहो अइसन विषय पर जवना पर बड़का-बड़का विद्वान लोग बहस करेला। गाँव के प्रधानपति जे अपना मेहरारू के आगे ना आवे देवेलन ओहिमे उनका मेहरारू के भी कम हाथ नइखे | मेहरारू लोग के भी ई सीख लेवे के चाहीं ‘कुछ भी नहीं असंभव हमसे’ अउरी मर्दाना के भी इहे बात बतावे के चाहीं के ऊ कर सकs तारी…
नौजवान लइका सन के सामने इहो एगो चुनौतिये बा कि जवन गाँव से शहर आ के पढ़े लं सन, का ओह लोग के गाँव के प्रति जिमेदारी ख़तम हो गइल बा ? अभिषेक त्रिपाठी के भी गाँव में ढेर समस्या देखे के मिलल… कबो कुछ त कबो कुछ ! इ दिक्कत के बढे के कारन इहो रहल ह कि ऊ गाँव के लोग से मिलजुल के ना रहे के चाहत रहलन। गाँव से जल्दी भागही के चक्कर में CAT के तैयारी करत रहलन लेकिन उनकर भाग साथ ना देहलस, फेल हो गइले लेकिन अब उनका पास होखे के मंतर मिल गइल बा ।आउरी गाँव से मोहब्बत वाला ऊंचाई भी…!
गहना लाइव खातिर ई रिव्यू गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शोधार्थी गरिमा रानी लिखले बानीं।

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