शब्दांजलि-सरधांजलि :
भोजपुरी आंदोलन के महानायक आ पहिल गद्यात्मक व्यंग्यकार डॉ. प्रभुनाथ सिंह
हमरा समझ से संस्कृत के देवभाषा एह से कहल गइल कि एकरा में रचल प्राय: हर कविता चाहे श्लोक समस्त सृष्टि खातिर जीवन मंत्र के काम करेला। नमूना के रूप में एगो श्लोक देखीं –
” अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलं वनौषधम्।
अयोग्यो पुरुषो नास्ति, योजकस्त्र दुर्लभ:।। ”
एह श्लोक के आशय ई बा कि कवनो अक्षर अइसन नइखे जवन जीवन मंत्र ना होखे, कवनो अइसन पवधा नइखे जवन औषधि ना होखे आ केहू अइसन व्यक्ति नइखे जे योग्य ना होखे। इहँवा खाली योजक के अभाव बा। कवन चीज आ कवन आदमी कहँवा ठीक ढ़ंग से काम कर सकेला। हर चीज आ हर व्यक्ति का गुन के पहचान के ओकरा अनुसार ओहिजा लगा देवेवाला ईमानदार जानकार होखे त ऊ सफल संयोजक, संचालन, समाज के अगुआ, कुशल राजनेता, मजल साहित्यिक संगठनकर्ता, आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता आ बैद्य सिद्ध हो सक ता। एही सब गुनन के मिलल-जुलल सफल संगठनकर्ता, साहित्यकार, शिक्षक आ राजनेता रहले बाबू डॉ. प्रभुनाथ सिंह। कब कहाँ का कहे के बा, केतना कहे के बा, केकरा से कहेके बा, कइसे कहे के बा , का लिखे के बा, कइसे लिखे के बा, केकरा से कवन काम कइसे करवा लेवे के बा आ केतनो घुसकउल विद्यार्थी के मगज में कइसे विद्या के बीज डाल देवे के बा उनका खूब मालूम रहे आ उनका जीवन का सफलता के सबसे बड़ राजो इहे रहे। इहे गुन, प्रतिभा आ मेधा उनका के सबका बीचे अजातशत्रु बना के आदरणीय, पूजनीय, वंदनीय आ अनुकरणीय बना दिहल। जवना के परिणाम आज सोझा बा कि उनका दस-एगारह साल गइला के बादो लोग उनका के उनका जनम दिन आ पुण्यतिथि के बड़ी आदर, सम्मान आ सरधा से इयाद करेला आ उनका अभाव के महसूस करत उनका बाकी सपना के पूरा करे खातिर संकल्प लेवेला।
आज ३० मार्च ह। उनकर पुण्यतिथि। आजुवे के दिन २००९ में नई दिल्ली से मुजफ्फरपुर आवे के क्रम में उत्तर प्रदेश के बस्ती रेलवे स्टेशन के आसपास वैशाली एक्सप्रेस के एसी कोच में उनकर हृदय गति रूक गइल रहे आ भोजपुरी-हिन्दी के साहित्य जगत होखे भा विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री-प्रबंधशास्त्री जगत भा सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक जगत, हर ओर हाहाकार मच गइल रहे। केहू का उनका निधन पर विश्वासे ना होत रहे। कुछ लोग बस्ती के ओर गाड़ी दउरावल तो कुछ लोग छपरा धावल। उनका शवयात्रा में अइसन जन सैलाव उमड़ल कि का कहे के । हर राजनीतिक दल के छोट-बड़ नेता-कार्यकर्ता, हिन्दी- भोजपुरी, संस्कृत, अर्थशास्त्र आदि के शिक्षक-छात्र, बड़ बड़ नौकरशाह, आम से खास तक सभे शवयात्रा आ दाह संस्कार में आखिर वे आंख में आंसू लेले जमल रहल। ओइसहीं उनका गांवे मुबारकपुर में सम्पन्न श्राद्ध संस्कार में भी उहे भीड़ रहे आ आजुओ जब उनकर जब कहीं जनम तिथि भा पुण्यतिथि मनावल जाला तो लोग बेबोलवले उनका विषय में कुछ कहे आ कुछ जाने खातिर जुम जाला। एकरे के केहू कवि कहले बा –
” ज़िन्दगी के बाद जीना जिन्दगी का नाम है।
जिन्दगी वह खाक जिसका मौत ही अंजाम है।।”
डॉ. प्रभुनाथ सिंह जइसन बहुमुखी, बहिर्मुखी, बहुवर्णी आ बहुआयामी अक्खड़, फक्कड़, कथक्कड़, बोलक्कड़ आ घुमक्कड़ व्यक्तित्व के सर्वसुलभ सृजनात्मक सार्थक जीवन यात्रा के एक-एक पक्ष के जाने खातिर तनी धैर्य से एह आलेख के पढ़े आ पचावे के पड़ी। राहुल सांकृत्यायन के बाद एह तरह के हरफनमौला इंसान के मिलल असंभव ना त कठिन जरूर बा।
मेधावी छात्र, प्रभावी शिक्षक, उद्भावी साहित्यकार, यथार्थवादी राजनीतिज्ञ आ सिद्ध संगठनकर्ता के रूप मे सुख्यात एह सादगी, साफगोई, सच्चरित्रता, संवादप्रिय, संवेदनशील, सामाजिक-सांस्कृतिक, संगीतप्रेमी का संयोजन आ कार्य संपादन के शैली छन भर में गैर के आपन आ आपन के आत्मीय बना लेत रहे। समय आ समाज के बीच संघर्ष के अभावपूर्ण धारा के रगड़ से साधारण पत्थर से शालिग्राम बनल प्रभुनाथ बाबू अपना जीवन्त जीवन के रचइता खुद रहलें। उनका हाजिरजवाबी आ ठहाका के गूंज से मनहूसो मनई में आनंद के तरंग उठ जात रहे। उनका के जानेवाला उनका के अंगरेजी में ‘ इंस्टिट्यूशन बिल्डर ‘ आ ‘प्रेजेन्सस्पिक्स’ कहते रहे। मतलब उनकर जीवन रचनात्मक संगठन, शैक्षिक संस्थान आदि के निर्माण खातिर समर्पित रहे। जहाँ पहुँच जास उनकर उपस्थिति बोलत रहे।
डॉ. साहेब के जनम 2 मई, 1940 ई. के सारन बिहार के एकमा के नजदीक मुबारकपुर गोला गांव में माई दुलारी देवी आ बाबूजी लक्ष्मी नारायण सिंह के सामान्य परिवार में भइल रहे। उनका घरे के आर्थिक हालत अइसन ना रहे के जे उनका के ढ़ंग के ढ़ंग से शिक्षा दिला सकत रहे। जइसे-तइसे मिडिल इस्कूल पास कइला के बाद उनकर नांव एकमा के अलख नारायण सिंह उच्च विद्यालय मे लिखाइल। पढ़े , भाषण देवे आ गीत गावे में इनका बचपने से महारत हासिल रहे। कुछे दिन में ई इस्कूल के संवेदनशील शिक्षक बैकुंठ बाबू के नजर में आ गइलन। प्रतिभा आ विनम्रता के फल ई भइल कि इनका छात्रवृत्ति मिले लागल। इस्कूल के परीक्षा फीस आदि माफ हो जाए। गुरु किरपा से किताब, कापी आ ट्यूशन मिलत गइल। सन् 1955 ई . में प्रथम श्रेणी से मैट्रिक पास कइला के बाद सन् 1955 ई. में इंटर आ बी.ए. करे खातिर राजेंद्र कालेज, छपरा में नांव लिखाइल। इहां इनका मेधा आ गायकी सहित साहित्यिक रूचि पर भोजपुरी प्रान प्राचार्य आ फिरंगिया जइसन कालजयी काव्य के कवि मनोरंजन प्रसाद सिन्हा के दृष्टि गइल आ ऊ इनका पर अस कृपालु भइलें कि इहँवों इनका हर आर्थिक आ शैक्षिक समस्या के समाधान हो गइल। कालेज का हर साहित्यिक, सांस्कृतिक आ शैक्षिक संगोष्ठी आ वाद-विवाद-संवाद का कार्यक्रम में बढ़चढ़ के हिस्सा लेवे लगलें। मनोरंजन बाबू के प्रिय भइला का वजह से आउर प्राध्यापक लोग के भी भरपूर सहयोग मिलत गइल। सन्1958ई. में कालेज के पत्रिका ‘राका’ (राजेन्द्र कालेज) में इनकर पहिल भोजपुरी कविता-गीत ‘झिहिर झिहिर झिसी का बीचे लहर लहर पुरवइया’ छपल आ इनका कवि रूप से छपरा के लोग परिचित भइल। ओकरा बाद ई कविता, कहानी , निबंध आ संस्मरण आदि लिखे लगलें। एह दरम्यान ऊ ट्यूशन करके अपना पढ़ाई के खरचा जुटा लेस। सन् 1959 ई. में बी.ए. कइला के बाद ई कुछ दिन ई गौतम ऋषि उच्च विद्यालय, रिविलगंज, सारन में अर्थशास्त्र के शिक्षक के रूप में पढ़वलें। जहां इनका भोजपुरी के कवि-गजलकार सतीश्वर सहाय वर्मा सतीश शिक्षक मित्र के रूप में मिल गइलें। दूनों जाना के लयदारी इस्कूल का जवार में चर्चा के विषय बन गइल रहे। एही बीच सन् 1959 ई. में इनकर नांव पटना विश्वविद्यालय के एम.ए. में लिखा गइल। जहां उनका रामेश्वर सिंह काश्यप जी उर्फ लोहा सिंह जइसन हिन्दी-भोजपुरी के नामचीन साहित्यकार, निबंधकार, नाटककार प्राध्यापक से जुड़े के सुअवसर भेंटाइल। एह तरह से प्रभुनाथ सिंह के भोजपुरी के सेवा में लागे के प्रेरणा बैकुंठ बाबू, मनोरंजन बाबू, सतीश जी आ काश्यप जी जइसन विभूतियन से मिलत चल गइल आ इनकर व्यक्तित्व बहुमुखी आ बहुआयामी आकार-विस्तार लेत चल गइल।
सन् 1962 ई.में पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए.कइला के बाद डॉ. साहेब कुछ दिन क्रमवार गौतम ऋषि उच्च विद्यालय, रिविलगंज, राजेन्द्र कालेज, छपरा आ बाढ़ कालेज, दानापुर में शिक्षक-व्याख्याता के रूप में योगदान दिहलें। एह बीच कुछ दिन मेडिकल रिप्रजेंटेटिभो के काम करके आर्थिक तंगी के तबाह कइलें। एकरा बाद सन् 1963ई. में इनकर बहाली अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के ओह ऐतिहासिक लंगट सिंह कालेज में हो गइल जहाँ देश के पहिल राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, स्वतंत्रता सेनानी आ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष जे.वी. कृपलानी शिक्षक रह चुकल रहस।चूकि बड़ परिवार के भाड़ माथे रहे आ सैलरी कम मिले एह से ई कुछ दिन एगो दवा के दोकानों खोल के पार्ट टाइम में चलावस। जवना में इनका सफलता ना मिलल आ दोकान बंद करेके पड़ल। एही दरम्यान इहंवो इनका भोजपुरी कवि आ दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक डाक्टर रिपुसूदन श्रीवास्तव से मिताई हो गइल। ओह घरी भोजपुरी आंदोलन के भामाशाह माने जाए वाला प्रगतिशील कवि सिपाही सिंह श्रीमंत मुजफ्फरपुरे में शिक्षा विभाग के पदाधिकारी रहलें। सभे मिलजुलके भोजपुरी के कार्यक्रम कइल करावल शुरू कइल। तत्कालीन कुलपति सुख्यात शिक्षाविद् डॉ. तारा भूषण मुखर्जी, प्रतिकुलपति डाक्टर ललन प्रसाद सिन्हा, सीनेटर डा.भोला प्रसाद सिंह आदि के सहयोग आ प्रेरणा से सन् 1970-71ई. में विश्वविद्यालय के लंगट सिंह कालेज में भोजपुरी के पढ़ाई शुरू हो गइल। प्रभुनाथ बाबू आ रिपुसूदन बाबू अपना विषय के वर्ग कइला के बाद भोजपुरी विभाग में पढ़ावे लोग। पं. गणेश चौबे जी किहां से भोजपुरी के किताब छंटा के आइल। भोजपुरी के पाठ्यक्रम बनल। चौबे जी, डॉक्टर कृष्णदेव उपाध्याय आदि विद्वान पाठ्यक्रम समिति के सदस्य रहलें। एही बीच सन् 1972 ई. में बिहार विधानसभा के चुनाव आ गइल आ उनकर विभागीय वरीय प्रध्यापक मित्र डाक्टर जगन्नाथ मिश्र जी उनका के सारन जिला के तरैया विधानसभा से चुनाव लड़े खातिर कांग्रेस के टिकट दे दिहलें। ई राजनीति के क्षेत्र उनका खातिर एकदम से अंजान रहे। बाकिर उनकर विनम्रता, साफगोई, वाक्पटुता आ ईश्वरीय कृपा उनका के विजय दिलवलस आ ई बिहार विधानसभा पहुँच गइलें। बाकिर सन् 1977ई. के जनता लहर में ई चुनाव हार गइलें। इनका अनुसार इनकर चुनाव हारल उनका ला वरदान साबित भइल । एही बीच ई मैनेजेरियल प्रोब्लेम्स ऑफ पब्लिक इंटरप्राइजेज इन इंडिया विथ स्पेशल रेफरेन्ट्स एच. ई. सी. लिमिटेड, राँची विषय पर शोधकार्य करके पी-एच. डी. के उपाधि अर्जित कर लिहलन।
सन् 1980 से01985 ई. तक फेर तरैया विधानसभा से चुनाव जीत के कई गो महत्वपूर्ण काम कइलें। एह बीच डाक्टर जगन्नाथ मिश्र जी का मुख्यमंत्रित्व काल में योजना, राजस्व आ वित्त मंत्री स्वतंत्र प्रभार में रहके कई गैर सरकारी इस्कूल-कालेजन के सरकारीकरण करववलें आ शिक्षक लोग के सम्मानजनक सैलरी आ पदोन्नति के मार्ग मुख्यमंत्री द्वारा प्रशस्त करववलें। जिला-जवार के के कहो बिहार का हर क्षेत्र के शिक्षित बेरोजगारन के योग्यता के हिसाब से नौकरी दिलवलें। छपरा हवाई अड्डा बनवावे आ ओकर पक्कीकरण में उनकर लमहर हाथ रहे। अपना विधायकी आ मंत्रित्व काल में कई विद्यालय आ महाविद्यालय के स्थापना करवावे आ खोलवावे में आपन बहुमूल्य योगदान दिहलें। जइसे- जनता कालेज/राजा सिंह कालेज, सिवान, कुँवर सिंह कालेज, लहेरियासराय, नंदलाल सिंह कालेज, दाउदपुर, डाक्टर रामबिहारी सिंह उच्च विद्यालय, बिसुनपुर मढ़ौरा, प्रभुनाथ जमादार उच्च विद्यालय, पोखरैरा,डा. पी.एन. सिंह इंटर आ डिग्री कालेज, छपरा, फिजिकल टीचर्स ट्रेनिंग कालेज, खगौल आदि।
डाक्टर प्रभुनाथ सिंह अपना जीवन में कई शैक्षिक-शैक्षणिक संस्थानन में कई गो प्रशासनिक पद पर कुशलता से आपन दायित्व निभवलें ;जइसे – विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय अर्थशास्त्र विभाग आ डीन, समाजविज्ञान संकाय, बी.आर.ए.बी.यू. मुजफ्फरपुर, निदेशक, यू.जी.सी. सम्पोषित एकेडमिक स्टाफ कालेज, बी.आर. ए. बी.यू.,मुजफ्फरपुर, प्रोफेसर आफ मैनेजमेंट, बी. आई. टी. मेसरा राँची, रेक्टर, इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी फार ह्यूमैन ट्रांसफोरमेंशन, रायपुर राँची, प्रोफेसर आ कार्यपालक निदेशक, दिल्ली इस्कूल आफ प्रोफेशनल स्टडीज एंड रिसर्च रोहिणी, दिल्ली आदि।
डाक्टर साहेब के मेम्बरशिप आफ प्रोफेशनल बाडीज आ एकरा से सम्बन्धित कुछ धारित पदन के नाम बा – सदस्य कार्यकारिणी, इंडियन कामर्स एसोसिएशन-1984-1996, कार्यपालक उपाध्यक्ष, इंडियन कामर्स एसोसिएशन-1998-2000, प्रधान सचिव, ऐप्सो, बिहार इकाई, विश्व शांति संगठन, अध्यक्ष, इकानामिक एसोसिएशन आफ बिहार एंड झारखंड-धनबाद सम्मेलन-2004 आदि।
पूर्व सोवियत संघ, अल्जीरिया, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, नेपाल आदि देसन में आपन व्याख्यान दे चुकल डाक्टर साहेब के लगभग तीन चार दर्जन शोधपूर्ण आलेख दस-बिदेस का स्तरीय जर्नल आ मैगजीन में प्रकाशित भइल आ पुरस्कृत भइल।
भोजपुरी भासा-साहित्य के विकास उनका योगदान के जनावे का पहिले उनका अन्य विषय के प्रकाशित कुछ पुस्तकन के नाम बतावे के चाहत बानी – स्टडीज इन इकानामिक प्लानिंग सह लेखन, बुकलैंड प्रा. लि. कोलकाता( 1965), ग्लिम्प्सेज आफ इकानामिक प्लानिंग एंड पालिसीज इन इंडिया, जानकी प्रकाशन, दिल्ली (1981), मैनेजेरियल प्राब्लेम्स आफ पब्लिक इंटरप्राइजेज इन इंडिया, जानकी प्रकाशन, दिल्ली(1982), लीडरशिप एंड मैनेजमेंट इफेक्टिवनेश सह लेखन दीप एंड दीप पब्लिसिंग हाउस, राजौरी गार्डेन, नई दिल्ली (1998), चैलेंजेज टू इंडियन कामर्स एंड बिजिनेस सम्पादित, दीप एंड दीप पब्लिसिंग हाउस, राजौरी गार्डेन, नई दिल्ली( 1998), मास्टर गाइड, यू.जी.सी. नेट/स्लेट मैनेजमेंट सह लेखन रमेश पब्लिसिंग हाउस, नई दिल्ली( 2006), इनसाइक्लोपीडिया आफ इंडियन इकानामी सम्पादित, दीप एंड दीप पब्लिसिंग हाउस राजौरी गार्डेन, नई दिल्ली( 2007) आदि।
एह तमाम शैक्षिक कार्य, शोध आलेख आ पुस्तक खातिर उनका अनेक बार सम्मान आ पुरस्कार मिलल रहे जइसे – प्रबंधशास्त्र खातिर सर्वोत्कृष्ट पुस्तक सम्मान- अखिल भारतीय प्रबंध सम्मेलन, पटना(-1981), मैन आफ द इयर सम्मान- अमेरिकन बायोग्राफिक इंस्टीट्यूट रालेध, अमेरिका (1995), सर्वोतम पूर्व छात्र सम्मान (2004 )राजेन्द्र कालेज छपरा, नागरिक अभिनंदन सम्मान( 9/2/2009) गोरखपुर आदि।
अब रहल भोजपुरी लेखन आ आंदोलन मे उनका योगदान आ सम्मान के बात त ऊ एह क्षेत्र में स्वांतःसुखाय अनवरत लागल रहत रहस। जहाँ तक भोजपुरी आंदोलन में अवदान के सवाल बा त सारन जिला भोजपुरी साहित्य सम्मेलन , छपरा, भोजपुरी भारती, जनता बाजार ढ़ोढ़ स्थान, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना, भारतीय भोजपुरी साहित्य परिषद्, मुजफ्फरपुर चाहे विश्व भोजपुरी सम्मेलन नई दिल्ली के कुल्ह दू दर्जन अधिवेशन, संगोष्ठी आ परिचर्चा आदि के आयोजक, संयोजक, संचालक आ संस्थापक आदि रहलें। इनका नेतृत्व में होखे वाला अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अमनौर, मुबारकपुर, छपरा, राँची, पटना, बोकारो आदि आ भारतीय भोजपुरी साहित्य परिषद् के मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, आमी आदि अधिवेशन के जोड़ा अबहीं ले केहू ना लगा सकल।
इनके प्रभाव के परिणाम रहे की बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, कुँवर सिंह विश्वविद्यालय आरा, संससकृत विश्वविद्यालय दरभंगा, मगध विश्वविद्यालय गया, पटना विश्वविद्यालय पटना, नालंदा खुला विश्वविद्यालय पटना आ इन्द्रिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय नई दिल्ली में भोजपुरी के अध्ययन-अध्यापन शुरू भइल रहे। जवना में से कुछ विश्वविद्यालय में अबहीं अध्ययन-अध्यापन बाधित बा।जदि आज ऊ रहितें त ई दिन ना देखे के पड़ित।
उनका साथ बितावल रचनात्मक छन के बहुते संस्मरण मानस पर उभर रहल बा। जदि सबके जोड़ल जाए त एगो मुकम्मल ग्रंथ लिखा सक ता। जवन हमार भविष्य के योजना बा। भोजपुरी के प्रायः हर स्तरीय पत्र पत्रिकन में उनकर कविता, गीत गजल, कहानी, निबंध संस्मरण आ पुस्तक समीक्षा आदि बिखड़ल पड़ल बा।जवना के समेटल बहुत बड़ शोधपरक आ जरूरी काम बा। ऊ कई भोजपुरी पुस्तक – पत्रिकन के संपादित कइले बाड़न जइसे – बी. आर.ए. बी. यू. भोजपुरी पद्य संग्रह, भारतीय भोजपुरी साहित्य परिषद् पत्रिका, भोजपुरिया संसार, भैरवी आदि।
उनकर चार गो मौलिक भोजपुरी पुस्तक प्रकाशित बा – ई हमार गीत भोजपुरी कविता, गीत, गजल, मुक्तक संग्रह (1984) ,गाँधी जी के बकरी भोजपुरी के पहिल गद्यात्मक व्यंग्य साहित्य संग्रह (1988) ,हमार गाँव हमार घर (भोजपुरी के कहानी, निबंध, संस्मरण संग्रह) (1998) आ पड़ाव भोजपुरी के कहानी आ ललित निबंध संग्रह (2004)। अइसे त मुक्तेश्वर तिवारी बेसुध चतुरी चाचा की चटपटी चिट्ठियां करके बनारस के आज अखबार में भोजपुरी के धारावाहिक गद्य प्रधान व्यंग्य लिखस। ओइसहीं प्रभुनाथ बाबू राँची एक्सप्रेस हिन्दी अखबार में भोजपुरी में समसामयिक समस्यन के लेके गद्य व्यंग्य धारावाहिक लिखीं जेकर नाम रहे “गाँधी जी के बकरी “। जवन बाद में पुस्तक रूप में पुस्तक सहयोग, डी एन दास रोड पटना से (1988 )में छपल। एकरा में बाइस गो मौलिक व्यंग्य आलेख बा। डॉ शंकर मुनि राम गड़बड़ अपना शोधप्रबंध में एकरा के भोजपुरी के पहिला गद्यात्मक व्यंग्यालेख के पुस्तक प्रमाणित करत प्रभुनाथ बाबू के पहिले गद्य व्यंग्यकार साबित किले बाड़न। भोजपुरी आंदोलन आ लेखन में महत्त्वपूर्ण योगदान खातिर उनका के भारतीय भोजपुरी परिषद्, लखनऊ के ओर से भोजपुरी भास्कर समयमान, पूर्वांचल एकता मंच दिल्ली से भोजपुरी गौरव सम्मान-2004, गोरखपुर के साहित्यिक समाज के ओर से नागरिक अभिनंदन सम्मान-9/2/2009 आदि मिलल रहे। आज कई गो राष्ट्रीय आ अन्तर्राष्ट्रीय संगठन उनका नाम पर सम्मान देके भोजपुरी सेवी लोग के हर साल सम्मानित करेला। अबहीं तक उनका पर पी-एच. डी. के उपाधि खातिर भोजपुरी में दू गो शोध प्रबंध लिखा चुकल बा। डा. ओम प्रकाश सिंह के शोध ग्रंथ ” भोजपुरी आंदोलन के प्रेरक व्यक्तित्व डॉ. प्रभुनाथ सिंह ” बहुते बहुमूल्य आ पठनीय पुस्तक बा। एह सब के बावजूद जब तक भोजपुरी के भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में स्थान ना मिल जाई। प्राथमिक स्तर से लेके स्नातकोत्तर स्तर तक एकरा पढ़ाई के समुचित बेवस्था ना हो जाई। जब वे यू पी एस सी, बी पी एस सी आदि परीक्षा खातिर भोजपुरी एगो विषय ना बन जाई तब तक ओह महानायक के सपना अधूरा रही जवना के पूरा करावल आज के भोजपुरी के साहित्यकार आ जन प्रतिनिधि लोग के परम कर्त्तव्य बा।
प्रस्तुत आलेख सुविख्यात लेखक अउरी कवि डॉ जयकांत सिंह ‘जय’ के लिखल ह। जयकांत जी एसोसिएट प्रोफेसर सह अध्यक्ष, भोजपुरी विभाग, लंगट सिंह महाविद्यालय, बिहार में कार्यरत बानीं अउरी विभिन्न सांस्कृतिक अउरी साहित्यिक गतिविधि में सक्रिय योगदान देत रहेनीं।