“बीर बाँकुरा बाबू कुँवर सिंह आ सन् 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम”
भोजपुर का पानी, बानी आ बीरन का जवानी-रवानी के जहान जानेला आ लो हा मानेला। एकरा के अनसोहातो रत्नगर्भा आ बीरप्रसूता ना कहल जाए। कवि चंचरिक बेजाँय नइखन कहले-
” कन-कन में जेकरा क्रांतिबीज
भोजपुर अइसन ठप्पा हमार
इतिहास कहे पन्ना पसार।”
एही वैदिक भोजकट्ट (भोजखंड)का वैदिक भोजगन के बीरता आ दानबीरता के चर्चा विश्वामित्र इन्द्र से आ महाभारतकालीन भोज परिवारन के चर्चा कृष्ण राजसूय जग में युधिष्ठिर से कर चुकल बारन। पुष्यमित्र एही माटी पर ग्रीक बिजेता मीनांदर के भुभुन भसकवले रहस। चन्द्रगुप्त अपना सेना के हिन्दूकुश तक हाँक के हथियवले रहस। जिनका से भयाके सिकन्दर ब्यासे नदी तर से भाग पराइल रहे आ ओकर सेनापति सेलुकस चन्द्रगुप्त के आपन बेटी देके जान छोड़वले रहे आ उल्टे पाँव यूनान भाग गइल रहे। उनका विजय के प्रतीक लौहखंभा आजुओ महरौली (दिल्ली) में गड़ल बा। शक आ कुषानन के दस-दस बेर गर्दा झाड़के भोजपुरिया बीर दस गो अश्वमेध जग कइले रहलें। कासी के दसाश्वमेध घाट एकरे गवाही देला। स्कन्दगुप्त एही भोजपुरिया जवानन का जोर पर हुनन के हूँक- हूँक के हुलिया बिगाड़ देले रहस। एकर एगो छोट सरदार सेरसाह दिल्ली का किला के हिला के हुमाँयु के परान लेके इरान भागे खातिर मजबूर कर देले रहे। सेरसाह के असामयिक मरन ना भइल रहित त भारत में मुगलन के नावो निसान ना रहित। सन् 1765 ई. में हुसेपुर गोपालगंज के राजा फतेह बहादुर शाही के डरे वारेन हेस्टिंग अइसन हड़बड़ाके भागल रहे कि भागत घरी ऊ कभी घोड़ा पर हउदा बान्हे त कभी हाथी पर जीन कसे। आजुओ भोजपुर में कहाला – गवाला –
“घोड़ा पर हउदा,हाथी पर जीन
भागल चुनार ला वारेन हेस्टिंग”
बागी बलिया के मंगल पाण्डेय,आगी आरा के बाबू कुँवर सिंह आ बीरभूमि बनारस के बेटी लछमीबाई (मनिकनिका) के परतोख ना दुनिया से दियाइल बा आ ना आगे दियाई। एही बेसानी जवानी आ पानी-रवानी के देख के भानु जी का कंठ से उचरल रहे
– ” होला एक पानी के मरद भोजपुरिया । ”
रउरा नइखीं जनले-सुनले त जानीं-सुनीं । आज हमहूँ जनाइये-बताइये देवे के चाहत बानी आ एकरा खातिर बानगी के रूप में भोजपुर के एगो टहकार जोत , चिर युवा, पराक्रम आ पौरुष के परतोख, यूद्धप्रियता आ दानबीरता के अजगूत नमूना सन् 1857 का स्वाधीनता संग्राम के ध्वजावाहक , महानायक आ पराक्रमी पुरोधा बीर बाँकुरा बाबू कुँवर सिंह का क्रांतिकारी व्यक्तित्व आ कृतित्व के थनगे-थनगे परोस रहल बानी।
आज जब देस आ देसी समाज के अपना-अपना क्षुद्र स्वार्थ खातिर छोट-छोट खाना में बाँट के अपना के सेसर आ बकिहा के अध्भेसर बतावे-जनावे का हिसाब से चिंगुरी पर ठार होके एंड़ी अलगावे के बेपरमान दौर चल रहल बा, ऊ एक दिन में नइखे तइयार भइल । एकर जमीन पहिले निजी लोभ-लाभ ला अपना इतिहासकारन के जरिये मुगल आ अँगरेज तइयार कइलें स आ बाद में ओकरे अनुयायी कुछ खास व्यक्ति आ परिवार । ताकि आगे के पीढ़ी ई जाने जे सबकुछ एही सभन के अरजल ह। आजादियो मिलला के बाद कुछ एही तरह से इतिहास लिखवावल आ पढ़वावल गइल। जहाँ तक सन् 1857 का स्वाधीनता संग्राम के बात बा त तब के अँगरेजी सरकार के चापलूस अँगरेज आ उनका बातन के उल्था क के दोहरावे वाला भारतीय इतिहासकार जोर-सोर से प्रचार कइलें कि ऊ महज सिपाही बिद्रोह रहे। कुछ लिखलें जे ऊ त तब के नरेस आ नबाब आपन-आपन राज बचावे खातिर गदर कइले रहस। जाति आ उपजाति का खाना में देस के बाँट के आपन-आपन उल्लू सीधा करेवाली वोट हसोथी राजनीति के सौदागर एही सोच आ विचारधारा के हवा दे रहल बा। मंगल पाण्डेय, कुँवर सिंह, लछमी बाई, हजरत महल, तात्या टोपे का संगे-संगे आगे चल के सावरकर, लाला लाजपत राय, आजाद, भगत सिंह, सुभास वगैरह खातिर अइसने बात प्रचारित करावे के असफल उतजोग कइल गइल। एह सब में बाबू कुँवर सिंह का योग्यता आ योगदान के साथे कुछ जादहीं जातती भइल। एक बेर भारत सरकार ‘ प्रथम स्वाधीनता संग्राम, 1857 ‘ नाम से 60 पइसा के डाक टिकट जारी कइले रहे त ओकरा में वीर कुँवर सिंह के छोड़ के रानी लछमी बाई, बेगम हजरत महल, तात्या टोपे , मंगल पाण्डेय आ नाना साहेब के नाम रहे। जदि बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, नेपाल आदि के लोक मानस अपना खेल के बोल, लोक गीत, गाथा, कथा, नाटक वगैरह में कुँवर सिंह का नाम- जस के ना बचवले रहित त पूर्वाग्रही चापलूस इतिहासकार लोग त वारा-न्यारा कइये देले रहे। लइकाईं में कबड्डी के बोल सुनले रहीं-
“चल कबड्डी आरा!
संतावन गोली मारा!
मारा मारा मारा —-”
चिक्का खेले में लोग बाले-
” बाँस के फराठी,
बाबू कुँवर सिंह के लाठी
झनाझन तरुआर,
झनाझन तरुआर।”
फगुआ में गवाये-
” बंगला में उड़ेला गुलाल,आहो लाला बंगला में उड़ेला गुलाल
बाबू,आरे कुँवर सिंह तेगवाबहादूर
बंगला में उड़ेला अबीर।
इत से आवे घेर फिरंगी
उत से कुँवर दूनू भाई,आरे गोला बारूद के बने पिचकारी।
बीचवे में होत लड़ाई।
आरे बाबू कुँवर सिंह तेगवा–”
चइता के ताल ठोकाए-
“ए रामा– बाबू आहे बाबू
आहे बाबू होकुँवर सिंह
गदर मचावे ए रामा गँवा-गाँई
गँवा -गाँवा नेवता पेठावे
ए रामा गँवा-गाँईं।।”
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कुँवर के लड़इया हो रामा
कुँवर के लड़इया हो।
कुँवर के लड़इया लड़े जाइब
हो रामा, आरा नगरिया।।”
बिरहा में सुनाए-
” बबुआ ओहि दिन दादा लेलें
तरुअरिया हो ना।
बबुआ धनवा धरम अवरु गइया हो ना।
बबुआ बिधवा वो राँड़ि के बिपतिया हो ना।
बबुआ भाई आ बहिन के इजतिया हो ना।
बबुआ बाप अवरु दादा के किरितिया हो ना।
बबुआ ओहि दिन दादा लेलें तरुअरिया हो ना।
बबुआ मरलें मराठा जुझे सिखवा हो ना।
बबुआ पेसवा के पूतवा गुलमवा हो ना।
बबुआ दिल्लीपति भइलें कंगलवा
हो ना।
बबुआ ओहि दिन —– तरुअरिया हो ना।।
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बबुआ असी हो बरीस के उमिरिया हो ना।
बबुआ थर थर काँपे जेकर मुड़िया हो ना।
बबुआ बकुला के पाँख अस केसिया हो ना।
बबुआ गिरी गइली जाहि दिन बतीसिया हो ना।
बबुआ ओहि दिन — तरुअरिया हो ना।”
कहीं पचरा सुनाए-
” धन भोजपुर धन भोजपुरिया पानी।
असियो बरिस में जहाँ आवेला जवानी।
जेकर असी बरिस में लवटल बा जवनियाँ
कहनियाँ बाबू कुँवर के सुनीं।”
धोबी-नाच में लोग झूम झूम के गावे –
“बाबू कुँवर सिंह पछिम के जब पेयान कइनीं।
पावना में डेरा गिरवनीं ना।
लोहा के जामा सियवनीं
बाँयाबंद लगवनीं ना।
ढ़ाल तरुआर के कवन ठेकाना
गोला बारुद संग धवनीं ना।”
पँवरिया लोग गावत मिले –
“भरल भोजपुर में कुँवर बिरजलें
रीवाँ रहल सरनिया नूँ।
हाट बाजार कवन बिराजे
के के कहल सब गुनवा नूँ।
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सबे बिसेन घर घुसी लुकइलें
बाबू पड़लें अकेले नूँ।।”
नदी में नाव खेवत मल्लाह लोग अलाप लेवे –
“घोड़वा चढ़ल जब चललन कुँवर सिंह, धरती पर मचेला कुलेल।
मोंछी के उठान देखि ताना मारे घोड़वा, खेलेला जवनिया गुलेल।।
जबहीं कुँवर सिंह खिंचलें लगमिया,घोड़ा उड़ी चलल आकास।
फर फर उड़ेला केसरिया पतखवा
झन झन बाजे तरुआर।।”
अइसहीं कजरी, लाचारी , पचरा वगैरह में लोक मानस अपना लोकनायक आ लोक खातिर असी बरिस के उमिर में सब सुख-सुबिधा तेयाग के जूझे वाला जोद्धा के जिया के राखल, जवन बाद के लोकवादी आ देसपरस्त इतिहासकार, साहित्यकार आदि के एह दिसा में सही तथ्य के खोज खबर लेके लिखे आ सरकार के उनका वंश परम्परा आ भारतीय स्वाधीनता संग्राम में उनका योगदान के लेके अनुसंधान के काम करे-करावे खातिर बाध्य कइलस।
लोक मानस के अपना लोकनायक के प्रति सरधा आ समर्पण से प्रेरित होके बाबू साहेब का कुल-खान्दान , जीवन-वृत आ देस के प्रति योगदान के खोज होखे लागल। बोधराज के हिन्दी पांडुलिपि ‘तारीख-ए-उज्जैनिया’, 18वीं सदी के लिखाइल चन्द्रमौलि मिश्र के ‘उदवन्त प्रकाश’, 19वीं सदी में लिखाइल रामकवि के ‘ कुँवर विलास’, बाबू साहेब के संगे लड़ेवाला उनकर दरबारी कवि तोफा राय के ‘कुँवर गाथा’ के अलावे अँगरेजी काल का अभिलेखन के हिंराये-मथाये लागल। कुँवर सिंह आ सन्1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम से जुड़ल तत्कालीन अँगरेज अधिकारी, इतिहासकार सहित कार्ल मार्क्स जइसन विश्वविख्यात विचारकन के दिहल विचार परोसाय लागल।
बीर कुँवर सिंह परमार क्षत्रिय राजपूत रहलें। जेकरा कुल के गौरव गाथा के पँवारा कहल जाला आ गावेवाला के पँवरिया। ऐतिहासिक राजा भोज के कुल में कई सय बरिस बाद भोजराज, जे भोजपुर आवेवाला पहिल व्यक्ति रहस। ई भोजराज बंसज रहलें उदयादित्य के। उदयादित्य के परमार वंश के आदिपुरुष मानल जाला। जे ‘धार’ नगर के पुनरुद्धार कराके आपन राजधानी बनवले रहस। उनका पहिल रानी से जयदेव आ दूसरकी रानी से रणधीर पैदा भइल रहस। जयदेव गुजरात के आ रणधीर धार के राजा भइलें। धाराधीपति रणधीर के कुल में कई पीढ़ी बाद मुकुलदेव आ भोजराज भइलें।
14 वीं सदी के शुरु में दिल्ली के बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी( 1296-1316 ) के बार-बार आक्रमण के चलते दक्खिन के मध्य भारत बरबाद हो गइल रहे, जवना के चलते आजिज आके मुकुलदेव आ भोजराज धार नगर छोड़ के सन् 1305 ई. में रोहतास आ भोजपुर के चेरो राजा मुकुन्द किहाँ अतिथि रूप में आश्रय लेहल लोग। बाद में रोहतास आ भोजपुर एही कुल के अधीन हो गइल। एह कुल के राजा लोग के दिल्ली का संगे लगातार संघर्ष जारी रहल। सतरहवीं सदी के शुरु में एही वंश के नारायण मल्ल के बेटा प्रबल शाही के दू पुत्र मानधाता सिंह आ सुजान सिंह में मानधाता सिंह बक्सर के उत्तराधिकारी भइलें आ सुजान सिंह के आरा, बिहियाँ,पँवार, पीरो आ ननौर परगना के लगभग 300 गाँव मिलल। सुजान सिंह के तीन बेटा उदवन्त सिंह, शुभ सिंह आ बुध सिंह में सबसे जेठ होखे के नाते सन् 1748 ई. में उदवन्त सिंह के जगदीशपुर के गद्दी मिलल। उदवन्त सिंह के चार बेटा गजराज सिंह, उमराँव सिंह , रण सिंह आ दीगा सिंह में गजराज सिंह के गद्दी मिलल। आपसी पारिवारिक कलह से आजिज आके उमराँव सिंह गाजीपुर के मित्र नवाब अब्दुल्ला किहाँ जाके रहे लगलें। उहँवे उमराँव सिंह के पुत्र साहेबजादा सिंह के जनम भइल। गजराज सिंह के नि:संतान पोता भूपनारायण सिंह रण सिंह के पोता ईश्वरी प्रसाद सिंह के गोद लेके गद्दी दे दिहलें। एह पर साहेबजादा सिंह मुकदमा कर दिहलें। साहेबजादा सिंह लड़े-भीड़े वाला गरम मिजाज के आदमी रहलें। पटना जा के ऊ मुकदमा के सिलसिला में मैक्सवेल से मिललें। बात-बात में बहसा-बहसी हो गइल आ ऊ हाकिम मैक्सवेल के नीमन धोवाई कर दिहले। उनकर गिरफ्तारी हो गइल। बाकिर टेकारी के जमीन्दार विक्रमादित्य सिंह आ कुछ आउर जमीन्दारन के जमानतदार बनला पर छूट गइलें। साहेबजादा सिंह के बिआह पंचरत्ना कुँवर से भइल रहे। जिनका से चार पुत्र के प्राप्ति भइल – कुँवर सिंह ,दयाल सिंह , राजपति सिंह आ अमर सिंह। कुँवर सिंह के जनम सन् 1777 ई. में भइल रहे। मुकदमाबाजी के चलते साहेबजादा सिंह आर्थिक तंगी में रहस।एही समय में सन्1800ई. में कुँवर सिंह आ दयाल सिंह के बिआह गया जिला के देवमूँगा के राजा जगतनारायण सिंह के बेटी सकलनाथ कुँवर आ कमलनाथ कुँवर से भइल। बिआह में एतना ना धन-जायदाद मिलल कि आर्थिक संकट टर गइल आ जगत नारायण सिंह के मदद से मुकदमो में जीत हो गइल। साहेबजादा सिंह का जगदीशपुर के गद्दी मिलल। एने कुँवर सिंह मस्त मिजाज आ दानी सुभाव के युवराज रहस। उनका आम आदमी से घुलल-मिलल आ ओकर मदद कइल पसन्द रहे। केहू कमजोर के सतावे त उलझ जास। अँगरेज अफसरो के ना बकसस। साहेबजादा सिंह का एह चलते बड़ा बदनामी झेले के पड़े। एक दिन ऊ आजिज आके कुँवर सिंह के सपरिवार घर से निकाल देले। एही बीच उनका दरभंजन सिंह के रूप में पुत्र के प्राप्ति भइल। सन् 1826 ई. में पिता के मृत्यु के बाद ऊ जगदीशपुर के गद्दी पर बइठलन। उनका पोता वीरभंजन सिंह के बिआह मुँगेर जिला के गिद्धौर राजपरिवार में भइल रहे। काल्पी के लड़ाई में वीरभंजन सिंह के शहीद भइला के बाद ऊ अपना भाई दयाल सिंह के जेठ बेटा रिपुभंजन सिंह के आपन उत्तराधिकारी बना के गद्दी पर बइठवलें।
अबतक के अभिलेखन के आधार पर एह बात के संकेत मिल्अता कि बाबू कुँवर सिंह सन् 1826ई. में गद्दी पर बइठला के बाद से अँगरेजन से लोहा लेवे के तइयारी में लाग गइल रहस। तीर्थाटन के बहाने समान बिचार के राज-रजवाड़ा से सम्पर्क बढ़ावल शुरु कर देले रहस। पटना आ सोनपुर मेला में चोरी-छुपे योजना बनल शुरु हो गइल रहे। सन् 1845-46 ई. में सोनपुर में बनल बिद्रोह के योजना के भनक पटना का अँगरेज अधिकारी के हो गइल रहे। उनका गिरफ्तारी के तइयारी भी हो गइल रहे। बाकिर बिहार आ भोजपुर में बिद्रोह के लमहर अंदेसा के चलते बंगाल सरकार गियफ्तारी पर रोक लगा के उनका पर नजर राखे के ताकीद कइले रहे। बाद में पटना के अधिकारी दोस्ती के बहाने उनका हर गतिविधि पर नजर राखत रहे आ बाबू कुँवर सिंह भी मने-मने एह बात के बूझ के सजग हो गइल रहस।
ई बात सही रहे कि सन् 1757 के पलासी के लड़ाई में अंगरेजन के जीत, सन् 1761 में पानीपत के तिसरकी लड़ाई में मराठा लोग के हार आ सन् 1765 ई. में बक्सर के लड़ाई में अंगरेजन के जीत उन्हन के मनोबल बढ़ा देले रहे। समय आ सत्ता धीरे-धीरे ओकनिये के हाथ में चल गइल रहे। भारतीय राज-रजवाड़ा आ नवाब लोग कमजोर पड़त चल गइल रहे। तबहूँ छोट-बड़ कुल्ह राज-रजवाड़ा आ नवाब लोग गुप्त रूप से संघर्ष के जमीनी तइयारी खातिर एक-दोसरा से कवनो-कवनो रूप में बातचीत करत रहे। देशी राजा, नवाब आ देशप्रेमी जन समुदाय के बीच मेला-ठेला, जग-परोजन, तीर्थाटन-पर्यटन आ सांस्कृतिक-धार्मिक आयोजनन के माध्यम से भा कवनो ना कवनो बहाने संवाद चलत रहे कि एगो तय तिथि आ समय पर पूरहर तइयारी का संगे कुल्ह जगे अंगरेजन पर आक्रमण कइल जाई आ ओह लोग के सोचे-समुझे का पहिले सबकुछ अपना हाथे कर लिआई। एह योजना पर सन् 1845 से बहुते बारीकी से काम आगे बढ़ल जात रहे कि एही बीच बैरकपुर छावनी (बंगाल) के मंगल पाण्डेय वाला घटना घट गइल। ऊ घटना अपरिपक्व अवस्था में क्रांति के चिनगारी सुलगा दिहलस आ कुँवर सिंह, पीर अली, लक्ष्मीबाई आदि जइसन लोग के योजना फेल हो गइल।
अंगरेज इहाँ के राजा आ नवाब लोग के लेके आउर चौकन्ना हो गइलें स। एही उद्देश्य से ऊ इहाँ का लोग के भासा, संस्कृति, साहित्य, परम्परा आ धार्मिक अनुष्ठानन के ऊपर अध्ययन-अनुसंधान करत रह सन। ओकनी का एह बात के भान रहे भारत के ई बीर जाति राजपूत लड़े-भीड़े से ना भाग स। ई मुगलन के खिलाफ अफगानन के ओर से लड़लें स त शेरशाह के दिल्ली के गद्दी तक पहुँचा देलें स। हुमायूँ का इरान भागे के पड़ल रहे। शेरशाह ना मरल रहित त इहाँ मुगलन के पांव त ई उखाड़िये चुकल रह सन। अकेले महाराणा अकबर के कबो चैन से ना रहे दिहलस। शिवाजी औरंगजेब के दिल्ली से बाहर ना निकले दिहलस। ऊ सब जबले एह भारतीय बीर जाति के बीच फूट ना डालल जाई आ एकनिये के सोझा राखके ना लड़ल जाई तबले कहीं सफलता ना मिल सके। एही से अंगरेजी सरकार एह सब के बीच फूट डालल, लोभ-लालच में ले आके दोस्ती के हाथ बढ़ावल शुरू कइल। कुछ राज-रजवाड़ा आ नवाब लोग प्रलोभन में अंगरेजन से समझौता करके देश का संगे गद्दारियो कइल। धीरे धीरे अंगरेज देशी राजा लोग का राज के खतम कइल शुरू कइलें स। दत्तक पुत्रन के राज्याधिकार से वंचित करे के कानून बनावल।
एने देश खातिर मरे-मिटे के कसम खा चुकल लोग आपन रणनीति बदले ला मजबूर हो गइल। बाबू कुँवर सिंह के सलाह पर अक्षयवर राय के हट्ठाकट्ठा जवान बेटा जनसोहावन राय के साजिश के तहत अंगरेजी पलटन में भर्ती करावल गइल। ऊ अंगरेजन के विश्वास जीत के दानापुर छावनी के कप्तान बन गइलें। ऊ बीस साल के उमिर में कप्तान हो गइल रहस। उनका ऊपर पच्चासी रंगरूटन सैनिकन के परेड करावल, ट्रेनिंग देहल आ बागियन पर नजर राखे के जिम्मा रहे। धीरे-धीरे अंगरेजी जुलूम बढ़त गइल। राजा आ नवाब लोग के राज छिनाए लागल। ओह लोग के गिरफ्तारी होखे लागल। गुप्त रूप से कुँवर सिंह के चिट्ठी जनसोहावन राय तक पहुँचावल गइल। जनसोहावन राय के ड्यूटी से आयर बहुत खुश रहत रहे आ उनका पर बहुते विश्वास करे। ऊ आयर से घरे जाए ला दू दिन के छुट्टी मँगलें त सहजता से मिल गइल। ऊ बहुत गुप्त ढ़ंग से जगदीशपुर जाके बाबू कुँवर सिंह से मिललें। सब बात भइल। बाबू कुँवर सिंह मित्र टेलर के बोलावा पर पटना ना जाए के कारन बतवलन त जनसोहावन राय संतुष्ट हो गइलन। बाबू कुँवर सिंह आगे के योजना जनसोहावन राय आ अपना कुछ खास लोग के बीच प्रकट कइलें। दू ओर से मतलब उत्तर आ पूरब से आरा पर चढ़ाई के योजना बनल। जनसोहावन राय धनपुरा होके आपन टुकड़ी लेके अइहें आ हमरा टुकड़ी के लोग गांगी के उत्तर गौसपुर के पूरब वाला आम का बगइचा में तीन बजे तक पहुँच जाई आ आरा पर कब्जा हो जाई। दानापुर छावनी में सूअर आ गाय वाला चर्बी के बंदूक के टोंटा वाला बात फइलाके मने मने बागी-बिद्रोही सिपाहियन के सबकुछ समझा दिहल गइल।
सैनिक सब परेड करत हथिया गाँव होत फ्लैग मार्च करत तिरहा गाँव होत विहटा मोड़ पहुँचल। जमीरा गाँव के पूरब बगइचा में ठहरल। धनपुरा होत आरा पर चढ़ाई करे के रहे। छावनी का मेयर के कुछ साजिश के भनक लाग गइल कि सिपाही बागी होके हर हथियार का संगे आरा पहुँचहीं वाला बाड़ें स। टेलर दू टुकड़ी सेना आरा भेज दिहलस। एगो एस्टीमर से बड़हरा घाट पर आ दोसर मनेर कोहेलना होके। एस्टीमर वाला टुकड़ी गौसगंज ओही आम का बगइचा में पहुँचल जहँवा राते से गाछन पर छूपल कुँवर सिंह वाला टुकड़ी घात लगवले छूपल रहे। जवना के हाथे उहाँ पहुँचल कुल्ह अंगरेज मारल गइलें। धनपुरा का अंगरेजी टुकड़ी पर जनसोहावन राय सिंह के नेतृत्व में बागी सिपाहियन के टुकड़ी तीन बजे भोर में हमला कर दिहलस। उहँवों अंगरेज मारल गइलें। घंटा दू घंटा में आरा पर कब्जा हो गइल। आरा कलक्टरी मैगजीन खजाना कुल्ह लुटा गइल। आरा पर कब्जा के बाद पच्छिम में बीबीगंज में भयानक लड़ाई छिड़ गइल। एह लड़ाई में जनसोहावन राय के पीठ में गोली लाग गइल। बाबू साहेब बच निकललें आ जनसोहावन राय के लेके उनकर गोतिया जवान परगास सिंह उनका के पीठ पर लाद के केहूङ बरनोरा गाँव पहुँच के हीरा ठाकुर के बोला के गोली निकलवावे पट्टी बंहववलें। ऊ पांच साल शिवपुर का जंगल में छूप के लड़ाई के अंजाम देस। उनका पर से सन् 1863 में प्रतिबंध हटल आ सन् 1882 में उनकर देहांत भइल।
2-3 अगस्त, 1957 के बीबीगंज के लड़ाई में बाबू कुँवर सिंह पांव पीछे करत जगदीशपुर के ओर बढ़ गइलें। आयर आरा आजाद कराके जगदीशपुर के ओर विशाल सेना लेके चढ़ाई कइलस। दुलार से जगदीशपुर ले भयानक जुद्ध भइल। 12 अगस्त के आयर जगदीशपुर जीत लिहलस। बाबू साहेब नोखा, रोहतास, सासाराम के फतह करत उत्तर प्रदेश में घुस गइलें। 26 अगस्त के मिर्जापुर के पास विजयगढ़ पहुँचले त अंगरेजन में दहसत फइल गइल। ऊ रामगढ़, राबर्टगंज, रींवा, बाँदा आदि फतह करत काल्पी पहुँचलें। जहाँ ग्वालियर के सैन्य दल उनका से आके मिलल। दिसम्बर में कानपुर में घनघोर लड़ाई भइल बाकिर उहँवा उनका सफलता ना मिलल आ ऊ लखनऊ पहुँच गइलें। जहँवा अवध के नवाब उनका के सम्मान में शिरोपांव भेंट कइले। फेर ऊ आजमगढ़ होत 15 फरवरी के अजोध्या पहुँच गइलन। 22 मार्च ,1858 के अतरौलिया के लड़ाई में कर्नल मिलमैन के तोप के आगे बाबू साहेब के एक ना चलल। ऊ पीछे हट गइलन। बाकिर फेर मिलमैन के जीत के आश्वस्त होखते फेरू टूट पड़लें। मिलमैन आजमगढ़ के ओर जान बचाके भागल।
मिलमैन का सेना के मदद खातिर अंगरेजी सेना बनारस आ गाजीपुर से कर्नल डेम्स के नेतृत्व में आजमगढ़ पहुँचल। 27 मार्च का ओहू सेना समूह के जान बचाके भागे के पड़ल। उहाँ के विजय के बाद बनारस जीतत बाबू साहेब शाहाबाद लौटे के पेयान कइलें। अंगरेजी सेना के के कहो गवर्नल जेनरल लार्ड केनिंग घबड़ा गइल। ऊ सेनापति लार्ड मार्क कर के बनारस भेजलस। 6 अप्रैल के लड़ाई में उहो हार के तोप पीछा करत भागल। बाबू कुँवर सिंह एह तमाम फतह के बाद रणनीति के तहत 13 अप्रैल के दू हजार आपन सैनिक आजमगढ़ में छोड़के गाजीपुर होत जगदीशपुर लवटे के तय कइलें।
17 अप्रैल के नघई गाँव के पास डगलस के विशाल सेना से कुँवर सिंह का सेना के भिड़ंत हो गइल। कुँवर सिंह से हार के डगलस पीछे हट गइल । ऊ कुँवर सिंह के पकड़ ना पावल। लगर्ड खुद लिखले बा कि अंगरेजी सेना कुँवर सिंह का सुव्यवस्थित रणनीति आ शौर्य के चलते कामयाब ना हो सकल। गंगा नदी के पास पहुँच के अफवाह फइलावल गइल कि कुँवर सिंह के सेना बलिया के नजदीक गंगा पार करी। अंगरेज डटल रहलें स। बाकिर उनकर सेना बलिया से दस मील दूर शिवपुरघाट से पार करत रहे। एकर भनक केहू आपने आदमी अंगरेजन तक पहुँचावल।ऊ शिवपुर पहुँच गइलें स। तबतक कुँवर सिंह के कुल्ह सेना नदी पार कर चुकल रहे। कुँवर सिंह अंतिम नाव से पार करत बीच धार तक पहुँचल रहले कि अंगरेज सैनिक के एगो गोरी उनका दहीना कलाई में लाग गइल आ ओह 81 बरिस का शेर के दहिना हाथ बेकामिल हो गइल। अब सउँसे देह में जहर फइले के डर हो गइल। फेर का सोचे के रहे ऊ अपना बाँवा हाथ से तलवार खींच के घायल दहिना हाथ केहुनी पर से काट के गंगा में फेंक दिहलें।। 22 अप्रैल के जगदीशपुर पहुँचले त अंगरेजी सेना दोबारा हमला कर दिहलस। ऊ बुढ़ा शेर अपना जगदीशपुर का सेना के संगे मिल के एकबेर फेर अंगरेजन के हराके भगवलें। जगदीशपुर पर बाबू कुँवर सिंह के कब्जा हो गइल। सउँसे जगदीशपुर में विजयोत्सव मनावल गइल। बाकिर इलाज के अभाव में घाव बढ़त गइल आ 26 अप्रैल के ऊ एह संसार से विदा ले लिहलें। एकरा बावजूद अंगरेजी सेना डरे जगदीशपुर ना जात रहे कि कहीं कुँवर सिंह के मरेके गलत अफवाह होई त सेना का बहुत क्षति उठावे के पड़ित। कई अंगरेज इतिहासकार लिखले बाड़न कि कुशल रहे कि कुँवर सिंह अस्सी-एकासी बरिस के बुढ़ा शेर रहे जवन रणकौशल आ अजगूत बहादुरी से लड़के अंगरेजी सरकार का नाक में दम कर देले रहे। जदि ऊ जवान रहित आ देशी राज रजवाड़ा, नवाब आ जनता के बनावल रणनीति काम कर जाइय त सन् 1857-58 में ही अंगरेजी सरकार का भारत छोड़े के पड़ जाइत। एही चीज के भोजपुरी के महाकवि सर्वदेव तिवारी राकेश अपना महकाव्य ‘ कालजयी कुँवर सिंह ‘ में कुँवर सिंह का मुँहे कहववले बाड़न –
‘ जो जो रे गद्दर आवे के अइले।
बाकिर भेंटइले निचाटे बुढ़ारी।।’
इतिहासकार होम्स लिखलस – ‘ ओह बूढ़ राजपूत के, जवन ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ एतना बहादुरी आ आन से लड़ँ, 26 अप्रैल ,1858 के मृत्यु हो गइल।’ बाकिर दुनिया के क्षहान जोद्धा कहाए वाला सीजर, सिकन्दर, आगस्टस, नेपोलियन आदि से भी बढ़चढ़के 80-81 बरिस के ई भारतीय बीर बाँकुड़ा बाबू कुँवर सिंह नौ-दस महीना लगातार जवना तरह से बेमिसाल लड़ाई लड़लें ओइसे इतिहास में केहू ना लड़ल। अबहीं तक भारतीय इतिहासकार बाबू कुँवर सिंह का अवदान के सही मूल्यांकन ना करके उनका साथे बहुत बड़ अन्याय कइले बा। बाकिर भोजपुरी, हिन्दी आ आउर-आउर भासा के कवि, नाटककार, साहित्यकार आदि बाबू साहेब पर खूब लिखले बाड़न आ आजहूँ लिखाता। आगहूँ लिखाई।
आखिर में हम प्रिंसिपल मनोरंजन बाबू के दू पाँति लिखके अपना अप्रतिम, बेमिसाल, अतुलनीय पूरखा के सरद्धांजलि देहब –
‘ अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।
सब कहते हैं कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।।’
प्रस्तुत आलेख सुविख्यात लेखक अउरी कवि डॉ जयकांत सिंह ‘जय’ के लिखल ह। जयकांत जी एसोसिएट प्रोफेसर सह अध्यक्ष, भोजपुरी विभाग, लंगट सिंह महाविद्यालय, बिहार में कार्यरत बानीं अउरी विभिन्न सांस्कृतिक अउरी साहित्यिक गतिविधि में सक्रिय योगदान देत रहेनीं।