मां दुर्गा के पहिला स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानल जाली। नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा हई। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म ले ला के कारण इनकर नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ल। इनकर वाहन वृषभ बा। एह से इ देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानल जाली। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित बा। ई सती के नाम से भी जानल जाली।
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी के पूजा-अर्चना कइल जाला ब्रह्म के अर्थ होला तपस्या और चारिणी माने आचरण करे वाली। त ब्रह्मचारिणी के अर्थ भइल तप के आचरण करे वाली। मां ब्रह्मचारिणी भगवान शंकर के पति रूप में पावे खातीर घोर तपस्या कइले रही। एही कारण से इनका ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाला।
मां दुर्गा के तीसरी शक्ति के नाम चंद्रघंटा ह। रानवरात्रि में तीस दिन इनकर पूजा होला। मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटा के आकार के आधा चंद्र बा जेकरा चलते इनकर नाम चंद्रघंटा पड़ल। इनकर दस हाथ बा जवन में ऊ अस्त्र शस्त्र धारण कइले बाड़ी। बाकी देवी के इ रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी ह।
नवरात्रि पूजा के चौथा दिन देवी के कूष्माण्डा स्वरूप के उपासना होला। कहल जाला कि ऊ आपन हल्की हंसी से ब्रह्मांड के उत्पन्न कइले रही. इनकर आठ भुजा बा। मां आपन हाथ में कमंडल, धनुष-बाण, कमल के फूल, अमृत से भरल कलश, चक्र, गदा अउर सब सिद्धि-निधि के देवे वाला जप माला धारण कइले बारी।
नवरात्रि के पांचवां दिन स्कंदमाता के पूजा के दिन होला। मानल जाला कि इनकर कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जालन। स्कंद कुमार कार्तिकेय के माता होखे के चलते इनकर नाम स्कंदमाता पड़ल। इ कमल के आसन पर विराजे ली जेकरा चलते इनका पद्मासना भी कहल जाला। इनकर वाहन सिंह बा।
मां दुर्गा के छठा रूप के नाम कात्यायनी ह। महर्षि कात्यायन पुत्री प्राप्ति के इच्छा से मां भगवती के कठिन तपस्या कइले रहन। तब देवी उनकर घरे पुत्री रूप में जन्म लिहली।अऊर येही से उनकर कात्यायनी नाम पड़ल।इनकर उपासना से भक्तन के आसानी से अर्थ (धन), धर्म, काम अऊर मोक्ष के प्राप्ति होला।
दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि के उपासना के विधान बा। कालरात्रि के पूजा कइला से ब्रह्मांड के सब सिद्धियों के दरवाजा खुल जाला अऊर सबन असुरी शक्तियों के नाश हो जाला। देवी के नाम से ही पता चल जाला कि इनकर रूप भयानक बा। इनकर तीन नेत्र बा अऊर शरीर के रंग एकदम काला ह। इन कृपा से भक्त भय मुक्त हो जाले।
माई दुर्गा के आठवीं शक्ति के नाम महागौरी बा। इनकर आयु आठ साल के मानल गईलबा। इनकर आभूषण अऊर वस्त्र सफेद होला के वजह से इनका श्वेताम्बरधरा भी कहल गइल बा। कहल जाला कि शिव के पति रूप में पावे खातीर महागौरी कठोर तपस्या कइले रही। जेकरा चलते उनकर शरीर काला पड़ गइल रहे। बाकी तपस्या से प्रसन्न भईला पर भगवान शंकर इनकर शरीर के गंगा जल से धोके कांतिमय बना दिहलन। तब से मां महागौरी कहईली । इनकर उपासना से सब पाप से मुक्ति मिलेला।
नवरात्रि पूजन के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री के उपासना होला।आज के दिन शास्त्रीय विधि-विधान अऊर पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करे वालन के सब सिद्धी के प्राप्ति हो जाला। भगवान शिव भी मां सिद्धिदात्री के कृपा से इ सब सिद्धी पवले रहन। इनके कृपा से महादेव के आधा शरीर देवी के हो गइल रहे अऊर ऊ अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध भईलन। इनकर साधना कइला से सब मनोकामना पूरा हो जाला।