चलु चलु बहिना हकार पुरै लै,
पूजा दाइ के वर एलखिन्ह टेमी दागै लै।
23 जुलाई सावन शुक्ल तृतीया तिथि के सुहाग के पर्व हरियाली तीज अउरी मधुश्रावणी पर्व मनावल गईल। मधुश्रावणी मुख्य रूप से बिहार के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित त्योहार बा। सुहागन स्त्री लोग एह व्रत के प्रति गहरा आस्था राखेला। अइसन मान्यता बा कि एह व्रत पूजन से वैवाहिक जीवन में स्नेह अउरी प्रेम बनल रहेला और सुहाग अमर हो जाला। मधुश्रावणी व्रत के लेके सबसे ज्यादा उत्साह अउरी उमंग नवविवाहिता कन्या लोग में देखे के मिलेला। नवविवाहित कन्या लोग श्रावण कृष्ण पंचमी के दिन से सावन शुक्ल तृतीया तक यानी 14 दिन तक दिन में बस एक समय भोजन करेला। आमतौर पर कन्या लोग एह सब दिन में मायके में रहल्ला। साज ऋंगार के साथे नियमित शाम में फूल चुनेला लोग अउरी डाला सजावेला। फिरु एह डाला के फूल से अगला दिन विषहर यानी नागवंश के पूजा करल जाला।
श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन एह पर्व के समापन मधुश्रावणी के रूप में होला। एह पूरा पर्व के दौरान 14 दिनों के अलग-अलग कथा होला जेमें मधुश्रावणी दिन के रोचक कथा राजा श्रीकर अउरी उनकर बेटी के होला।
एह कोरोना काल मे मिथिला क्षेत्र में नवविवाहित लोग के महापर्व मधुश्रावणी आज गुरुवार के परंपरागत विधि विधान के साथ संपन्न हो गईल। करीब एक पखवाड़ा तक चलल एह महापर्व में नवविवाहिता लोग के सुखद व सफल दाम्पत्य जीवन के शिक्षा देहल गईल। सावन माह के कृष्ण पक्ष पंचमी से शुरू होके 15वें दिन टेमी दागे के प्रथा के साथ पर्व संपन्न हो गईल। पूरा पर्व के दौरान विभिन्न कथा के माध्यम से नवविवाहिता लोग के दाम्पत्य जीवन के हर एक पहलु के बारीक जानकारी महिला पुरोहितों के माध्यम से देहल जाला।
विधि-विधान के साथ पूजन कर के नवविवाहिता लोग अपन सुहाग के सलामती के आशीर्वाद ईश्वर से लेला। प्रतिदिन फूल लोढ़ कर ले आवे वाली व्रती बासी फूलन से अगले दिन गौरी, महादेव, विषहरि सहित अन्य देवी देवताओं के पूजा अर्चना करेली। अंतिम दिन मधुश्रावणी के विधान ह। गुरुवार के यानी आज एके लेके सुबह से ही व्रती लोग के आंगन में खास चहल पहल नजर आईल।जेकर पहिला मधुश्रावणी रहल ओह व्रती के ससुराल से परंपरानुसार भार आईल। व्रती के मां सहित पूरा परिवार खातिर नया वस्त्र आईल। नया परिधान में लिपटल व्रती न
नख-सिख तक श्रृंगार कइली। एकरा बाद पूजन के विधि शुरू भईल। मिथिला के विशेष विधान के अनुरूप व्रती के टेमी भी देहल गईल। मान्यता बा कि फफोला जेतना बड़ होंई वर-वधु के वैवाहिक जीवन ओतने सुखी होई अउरी ऊ ओतने दीर्घायु होई। पूजन के पश्चात भार के प्रसाद आगंतुक महिला लोग के बीच बांटल गईल।
प्रचलित है कई दंत कथाएं
वैसे तो इस पर्व के संबंध में विभिन्न तरह की दंत कथा प्रचलित है, लेकिन मुख्य रूप से कहा जाता है कि एक दिन भगवान शंकर सरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे कि उन्हें अचानक स्वप्नदोष हुआ जिसे उठाकर उन्होंने जलकुंभी पर फेंक दिया, जिससे नाग देवता के पांचों बहन की उत्पत्ति हुई। उसके बाद भगवान शंकर प्रतिदिन उक्त सरोवर में जलक्रीड़ा के बहाने पहुंचने लगे और पांचों नाग बहनों की देखरेख व लालन-पालन करने लगे।
इसकी भनक जब माता पार्वती को लगी तो एक दिन वे वहां पहुंचकर पांचों नाग बहन को पांव से कुचलने लगी। अचानक भगवान शंकर वहां प्रकट हुए और पार्वती को ऐसा करने से रोकते हुए कहा कि ये पांचों आपकी ही पुत्री है। इन पांचों बहन का मृत लोक में पृथ्वी पर सावन मास में जो नवविवाहिता पूजा-अर्चना करेगी उसे जीवन भर सर्पदंश से रक्षा होगी और उनके और उनके पति की अकाल मौत नहीं होगी।
15 दिन तक विभन्न दंत कथा के आधार पर मिथिला के नवविवाहिता लोग नाग के विभिन्न स्वरूप जया, देव, दोतरी, नाग, नागेश्वरी साथ में अन्य देवी-देवता लोग के 14 दिन तक बिना नमक के सेवन कइले मात्र एक शाम खाके, दिन में चुनकर सजावल बासी फूल से पूजा-अर्चना करेली। एह पूजा में उनुकर मदद गांव के केहू बुजुर्ग महिला करेली, जिनकरा के मधुश्रावणी के दिन दक्षिणा व अन्न-वस्त्र देकर प्रसन्न कईल जाला।