चैत्र नवरात्रि के शुरूआत 25 मार्च से हो गईल। ई 2 अप्रैल तक चली। 2 अप्रैल के रामनवमी मनावल जाई। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूप के पूजा-अर्चना कईल जाला। उत्तर प्रदेश में मां दुर्गा के पूजा के एगो बड़ अउरी बहुत जगता स्थल मिर्जापुर जिले में स्थित मां विंध्यवासिनी मंदिर ह. एह मंदिर में साल के दुनु नवरात्रि पर भक्तन के भीड़ उमड़ेला लेकिन अबकी अगर रउआ विन्ध्याचल जाए के सोचs तानी न मत जाईं। काहेकि विंध्यवासिनी मंदिर के कपाट अनिश्चित काल खातिर बंद कर देहल गईल बा।
अइसन कदम कोरोना वायरस के बढ़त संक्रमण के ध्यान में रख के कईल गईल बा। मंदिर समिति के बैठक में ई फैसला लिहल गईल। एकरा पहले 18 तारीख के भईल बैठक में खाली मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश अउरी प्रसाद चढा़वे पर रोक लागल रहे. नवरात्रि मेला के दौरान देश के विभिन्न प्रांत से भक्त-लोग मां विन्ध्यवासिनी के दर्शन करे विन्ध्याचल पहुंचेला। एह लोग के संख्या लाखन में होला।
सब केहू जान रहल बा कि कोरोना वायरस एगो संक्रामक विषाणु ह। ई लोगन में एक दूसरे से संपर्क के दौरान ही फ़ैलेला। एकरा कहर से आमजन के बचावे खातिर ही विंध्यवासिनी मंदिर के बन्द रखे के निर्णय लेहल गईल बा. नगर विधायक एवं तीर्थ पुरोहित पं. रत्नाकर मिश्र एकरा के देश अउरी समाज के हित खातिर उठावल आवश्यक कदम बतवलन. नवरात्रि में प्रतिदिन पुजारी द्वारा श्रृंगार अउरी पूजन के बाद कपाट बन्द कर देहल जाई. झांकी से भी भक्तन के दर्शन नाही मिल पाई।
देवी भक्तन के विश्व प्रसिद्ध धाम ह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला में विन्ध्य पहाड़ी पर स्थित आदिशक्ति श्री दुर्गा जी के मन्दिर, जेके दुनिया विन्ध्याचल मंदिर के नाम से पुकारेले! ई आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी के धाम अनादी काल से साधक लोग के प्रिय सिद्धपीठ रहल बा।विंध्याचल मंदिर पौराणिक नगरी काशी से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित बा।
देश के 51 शक्तिपीठ में से एक ह विंध्याचल। सबसे खास बात ई बा कि ईहां तीन किलोमीटर के दायरा में तीन प्रमुख देवी लोग विराजमान बाटे। अईसन मानल जाला कि तीनों देवी लोग के दर्शन कइले बिना विंध्याचल के यात्रा अधूरा बा। तीनों के केन्द्र में बानी मां विंध्यवासिनी। निकट ही कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान बानीं।
माता के दरबार में तंत्र-मंत्र के साधक लोग भी आकर साधना में लीन होकर माता रानी के कृपा पावेला। नवरात्र में प्रतिदिन विश्व के कोने-कोने से भक्तन के तांता जगत जननी के दरबार में लागल रहेला। त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल क्षेत्र के अस्तित्व सृष्टि से पूर्व के ह अउरी प्रलय के बाद भी समाप्त ना होई अइसन मान्यता बा। इहाँ महालक्ष्मी, महाकाली व महासरस्वती स्वरूपा आद्यशक्ति मां विंध्यवासिनी स्वयं विराजमान बानीं। ईहां सबसे पहले गंगा स्नान कईल जाला अउरी ‘जय माता दी के उद्घोष करत मां विंध्यवासिनी के दर्शन कईल जाला।
एह महाशक्तिपीठ में वैदिक अउरी वाम मार्ग विधि से भी पूजन होला। शास्त्रन के अनुसार, अन्य शक्तिपीठ में देवी के अलग अलग अंग के प्रतीक रूप में पूजा होला जबकि विंध्य महात्म्य के अनुसार मां विंध्यवासिनी पूर्णपीठ हई। अइसे त एह पीठ में मां के दर्शन साल के बारहों महीने अनवरत होला लेकिन इहाँ नवरात्र के विशेष महत्व होला। ईहां शारदीय तथा बासंतिक नवरात्र में लगातार चौबीस घंटे मां के दर्शन होला नवरात्र के दिन में मां के विशेष श्रृंगार खातिर मंदिर के कपाट दिन में चार बार बंद कईल जाला।
नवरात्र के दिन में एतना भीड़ होला कि अधिसंख्य लोग मां के पताका के दर्शन करके ही खुद के धन्य मानेला। हालांकि मां के चौखट तक गइला बिना केहू ना लौटेला, लेकिन अईसन मान्यता बा कि पताका के भी दर्शन हो जाए त यात्रा पूर्ण मानल जाई। लेकिन एह साल भक्त लोग निराश होई।
एह साल पूरा विश्व के साथे भारत भी कोरोना के असर में आ गईल बा।भीड़ इकट्ठा ना होखो एहि कारण से सब मन्दिर मस्जिद अउरी तमाम धार्मिक जगह पर रोक लगा दे गईल बा।