आज भिखारी ठाकुर के जयंती ह। भिखारी ठाकुर यानी कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार अउरी अभिनेता । भिखारी ठाकुर के मातृभाषा भोजपुरी रहे अउरी भोजपुरी के ही उहाँ के आपन काव्य अउरी नाटक के भाषा बनवनीं। भिखारी ठाकुर जेके ‘भोजपुरी के शेक्सपियर”,”भोजपुरी के भारतेंदु” कहल जाला। जेके “भरत मुनि के परंपरा के कलाकार” कहल जाला अउरी जेके राहुल सांकृत्यायन “अनगढ़ हीरा” कहले बानीं उहाँ के भोजपुरी के सशक्त हस्ताक्षर बानीं।
भिखारी ठाकुर जी आजे के दिन एह धरती पर 1887 ई.में अईनीं। केहू ना जानत रहे कि अनपढ-दबल-कुचलल ई लोक संस्कृति के चितेरा, सभके दिल पर राज करी।माई-भाखा के ले के एगो इनका हाथे कईल आ धईल साहित्यिक उतजोग,जवन हमनीं के थाती बन के हमनीं के सोझा हिमालय के नियन छाती ठोक के ठाढ बा,हमनीं खातिर अनघा पूंजी बा,जेकरा बूते हमनीं के आज इतरात बानीं स।
कहल जाला कि जवना बधार के पुरखा-पुरनिया के ओकर अगिला पीढी इयाद ना करो,उहां के इतिहास मुअतार हो जाला।त काहे ना एक बार फेरु से भोजपुरी के एह लडवईया,लिखवईया,गवईया खातिर अंजूरी भर फूल मन से इहां के चरण में रखाव।
“भिखारी ठाकुर अपना नाटक के माध्यम से सामाजिक चेतना लावे के प्रयास कइनीं । बिहार के सबसे बड़ समस्या रहल बा रोजी – रोटी के, एही खातिर युवा पीढ़ी के पलायन होत रहल बा। केतना सरकार आइल, अउरी गईल बाकिर बिहार से पलायन रूके के नाम नइखे लेत। एही समस्या के ध्यान में रखके भिखारी ठाकुर दू गो नाटक के रचना कइनीं। पहिलका ‘बिदेसिया’ अउरी दूसरका ‘गबरघिचोर’ । बिदेसिया में नायक कमाए खातिर परदेस त जाता, बाकिर ऊ मेमिन के चक्कर में गाँव – घर के साथे – साथे अपना नवविवाहिता पत्नी के भी भूल जाता। परदेस में ऊ त मेमिन के साथे आराम से रहsता बाकिर ओकर पत्नी आपन मर्यादा खातिर गांव में संघर्ष कर रहल बिया।
‘गबरघिचोर’ में भिखारी ठाकुर देखवले बानीं कि नायक के परदेस गइला के बाद नायिका अपनाआप के संभाल नइखी पावत अउरी गाँव के ही एगो युवक के साथे उनुकर संबंध बन जाता जेसे एगो पुत्र होता। ओकर नाम ह गबरघिचोर । जब परदेस में नायक के पता चलता कि ओकर अनुपस्थिति में ओकर पत्नी ₹ बेटा जन्मवले बाड़ी त ऊ गांवे आकर पुत्र पर आपन दावा ठोक देता । गबरघिचोर के असली पिता भी आपन दावा कर रहल बा । माई त माई हई.. ऊ अलगे दावा कर रहल बाड़ी। चूँकि पुत्र अब कमाए योग्य हो गईल बा एहीसे से दावेदार लोग आपस मे लड़ जाता अउरी मामिला पंचायत तक पहुंच जाता।Y
एही तरे भिखारी ठाकुर अपना हर नाटक में एगो गंभीर समस्या के बड़ा ही रोचक ढंग से उठवले बानीं । “बेटी बियोग” नाटक में जहाँ बेमेल विवाह के त “गंगा स्नान” नाटक में बुजूर्ग माँ के औलाद के तरे बोझ समझे लागेला अउरी ओसे छुटकारा पावे के लिए कवन कवन उपाय कर रहल बा,ई देखावल गईल बा।
भिखारी ठाकुर के नाटकन में संवाद बड़ा रोचक अउरी हास्य ब्यंग्य से परिपूर्ण होला, दोसरा तरफ सब नाटक संगीत प्रधान भी बा,जे समस्या प्रधान होखला के बाद भी काफी मनोरंजक बा। भिखारी ठाकुर अपना नाटकन के माध्यम से समाज के सही दिशा दिखावे के काम कइले बानीं। भिखारी के नाटक आज भी ओतने प्रासंगिक बा जेतना ओह समय मे रहे । आज उनकर जयन्ती बा , अइसन महान नाटककार के शत् शत् नमन ।।