छठ पुजा के खास बात

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नवरात्री, दूर्गा पूजा के तरह ही छठ पूजा भी हिंदू के प्रमुख त्यौहार ह। क्षेत्रीय स्तर पर बिहार में एह पर्व के लेके एगो अलग ही उत्साह देखेके मिलेला। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव के उपासना के पर्व ह। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ के सूर्य देवता के बहिन हई। मान्यता ह कि छठ पर्व में सूर्योपासना कईले से छठ माई प्रसन्न होली अउर घर परिवार में सुख शांति, धन धान्य से संपन्न करली।

कब मनावल जाला छठ पूजा के पर्व

सूर्य देव के आराधना के इ पर्व साल में दू बार मनावल जाला। चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी एही दो तिथि के इ पर्व मनावल जाला। हालांकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी के मनावे जाये वाला छठ पर्व मुख्य मानल जाला। कार्तिक छठ पूजा के विशेष महत्व मानल जाला। चार दिन तक चले वाला एह पर्व के छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नाम से जानल जाला।

काहें कईल जाला छठ पूजा

छठ पूजा कइले चाहें उपवास रखे के सबके आपन आपन कारण होला लेकिन मुख्य रूप से छठ पूजा सूर्य देव के उपासना कके उनकर कृपा पावे के खातीर कइल जाला। सूर्य देव के कृपा से सेहत अच्छा रहेला। सूर्य देव के कृपा से घर में धन धान्य के भंडार भरल रहेला। छठ माई संतान प्रदान करेलीन। सूर्य जइसन श्रेष्ठ संतान के खातीर भी इ उपवास रखल जाला। अपनी मनोकामनाओं के पूर्ण करे के खातीर भी एह व्रत के रखा रखल जाला।

के ह देवी षष्ठी अउर कइसे भईली उत्पन्न?

हमनी के बतावल जाला लेकिन छठ व्रत के कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर के पुत्री देवसेना बतावल गईल बाड़ी। देवसेना अपनी परिचय में कहेली कि उ प्रकृति के मूल प्रवृति के छठा अंश से उत्पन्न भइल बाड़ी इहे कारण ह कि हमके षष्ठी कहल जाला। देवी कहेली अगर आप संतान प्राप्ति के कामना करतानी त हमार विधिवत पूजा करीं। ई पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी के करे के विधान बतावल गईल बा।

पौराणिक ग्रंथों में

एके रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या अईले के पश्चात माता सीता के साथे मिलके कार्तिक शुक्ल षष्ठी के सूर्योपासना कइले से भी जोड़ के दखल जाला, महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना से पुत्र के प्राप्ति से भी एके जोड़ के देखल जाला।

सूर्यदेव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जेनके अविवाहित कुंती जन्म देहले के बाद नदी में प्रवाहित कर दिहली उहो सूर्यदेव के उपासक रहबलन।उ घंटा भर जल में रहके सूर्य के पूजा करत रहलन। मान्यता ह कि कर्ण पर सूर्य के असीम कृपा हमेशा बनल रहे। एही कारण लोग सूर्यदेव के कृपा पावे के खतीर भी कार्तिक शुक्ल षष्ठी के सूर्योपासना करेला।

छठ पूजा के चार दिन

छठ पूजा के पर्व चार दिन तक मनावल जाला

  1. छठ पूजा के पहिला दिन नहाय खाय – छठ पूजा के त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी के मनावल जाला लेकिन एकर शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के नहाय खाय के साथ होला। मान्यता ह कि एह दिन व्रती स्नान आदि कके नया वस्त्र धारण करेतलन अउर शाकाहारी भोजन लेने। व्रती के भोजन कइलेन के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करेलन।
  2. छठ पूजा के दूसरका दिन खरना – कार्तिक शुक्ल पंचमी के पूरा दिन व्रत रखल जाला अउरी शाम के व्रती भोजन ग्रहण करेलन। एके खरना कहल जाला। एह दिन अन्न व जल ग्रहण कईले बिना उपवास कईल जाला । शाम के चावल व गुड़ से खीर बनाके खाईल जाला। नमक अउरी चीनी के इस्तेमाल नाहीं कइल जाला। चावल के पिठ्ठा अउरी घी लगावल रोटी भी खाईल अउर प्रसाद के रूप में वितरीत कइल जाला।
  3. षष्ठी के दिन छठ पूजा के प्रसाद बनावल जाला। एहमें ठेकुआ विशेष रुप से होला। कुछ स्थान पर एके टिकरी भी कहल जाला। चावल के लड्डू भी बनावल जाला। प्रसाद अउरीफल लेके बांस के टोकरी में सजावल जाला। टोकरे की पूजा कके सब व्रती सूर्य के अर्घ्य देवे के खातीर तालाब, नदी या घाट आदि पर जाने। स्नान कके डूबत सूर्य के आराधना कईल जाला।

अगले दिन यानि सप्तमी के सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाला उपासना के प्रक्रिया के दोहरावल जाला। विधिवत पूजा कके प्रसाद बांट के छठ पूजा संपन्न कईल जाला।

छठ या सूर्यषष्‍ठी व्रत में कौने-कौने देवी-देवताओं के पूजा कईल जाला ?

एह व्रत में सूर्य देवता के पूजा कईल जाला, जवन प्रत्‍यक्ष दिखेला अउर सब प्राणी के जीवन के आधार होला… सूर्य के साथ-साथ षष्‍ठी देवी या छठ मैया के भी पूजा कईल जाला। पौराणिक मान्‍यता के अनुसार, षष्‍ठी माता संतानों के रक्षा करेलान अउर ओनके स्‍वस्‍थ अउर दीघार्यु बनावेली। एह अवसर पर सूर्यदेव के पत्नी उषा अउर प्रत्युषा के भी अर्घ्य देके प्रसन्न कईल जाला। छठ व्रत में सूर्यदेव अउर षष्ठी देवी के पूजा साथ-साथ कईल जाला। एह तरह इ पूजा अपनी-आप में बेहद खास होला।

सूर्य से त सभे परिचित बा, लेकिन छठ मईया कवन- देवी हई?

सृष्‍ट‍ि के अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के एगो प्रमुख अंश के देवसेना कहल गईल बा। प्रकृति के छठा अंश होखले के कारण एह देवी के एगो प्रचलित नाम षष्‍ठी हवे।

 

षष्‍ठी देवी के ब्रह्मा के मानसपुत्री भी कहल गईल बा। पुराणों में एह देवी के एक नाम कात्‍यायनी भी ह। इनके पूजा नवरात्री में षष्‍ठी तिथि के होला। षष्‍ठी देवी के ही स्‍थानीय बोली में छठ मैया भी कहल गईल बा, जवन नि:संतानों के संतान देली अउर सब बालक के रक्षा करेली।

प्रथम मनु स्‍वायम्‍भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत के कवनो संतान नाहीं रहल, एही कारण उ दुखी रहत रहने । महर्षि कश्‍यप राजा से पुत्रेष्‍ट‍ि यज्ञ करेके कहने. राजा यज्ञ करईने, जेकरे बाद उनकर महारानी मालिनी एगो पुत्र के जन्‍म देहली। लेकिन दुर्भाग्य से उ शिशु मरल पैदा भईल रहे। राजा के दुख देखके एगो दिव्‍य देवी प्रकट भईली। उ ओह मृत बालक के जीवित कर देहली। देवी के एह कृपा से राजा बहुत खुश भईने. उ षष्‍ठी देवी के स्‍तुति कईने। तबसे इ पूजा संपन्न कईल जाला।

आध्‍यात्‍म‍िक ग्रंथों में सूर्य के पूजा के प्रसंग कहां-कहां मिलेला?

शास्‍त्र में भगवान सूर्य के गुरु भी कहल गईल बा। पवनपुत्र हनुमा सूर्य से ही शिक्षा पईने। श्रीराम आदित्‍यहृदयस्‍तोत्र के पाठ कके सूर्य देवता के प्रसन्‍न कईले के बाद रावण के अंतिम बाण मारले रहने अउर ओहपे विजय पईले रहने।

 

श्रीकृष्‍ण के पुत्र साम्‍ब के कुष्‍ठ रोग हो गईल रहे, तब उ सूर्य के उपासना कके ही रोग से मुक्‍त‍ि पईने …सूर्य के पूजा वैदिक काल से काफी पहिले से होत आवता।

 

  1. सनातन धर्म के अनेक देवी-देवताओं के बीच सूर्य के का स्‍थान बा?

सूर्य के गिनती उ 5 प्रमुख देवी-देवताओं में कईल जाला, जिनके पूजा सबसे पहिले करेके विधान ह। पंचदेव में सूर्य के अलावा अन्‍य 4 : गणेश, दुर्गा, शिव, विष्‍णु. (मत्‍स्‍य पुराण)

भगवान सूर्य सब पर उपकार करे वाला, अत्‍यंत दयालु हवें। उ उपासक के आयु, आरोग्‍य, धन-धान्‍य, संतान, तेज, कांति, यश, वैभव अउर सौभाग्‍य देने। उ सबके को चेतना देने।

 

सूर्य के उपासना कईले से मनुष्‍य के सब तरह के रोग से छुटकारा मिल जाला। जवन सूर्य के उपासना करेने, उ दरिद्र, दुःखी, शोकग्रस्‍त अउर अंधा नाहीं होलन।

 

सूर्य के ब्रह्म के ही तेज बतावल जाला। धर्म, अर्थ, काम अउर मोक्ष, इ चारों पुरुषार्थ क देवे वाला हवें, साथ ही पूरा संसार के रक्षा करे वाला हवें।

का एह पूजा में कवनो सामाजिक संदेश भी छिपल बा?

सूर्यषष्‍ठी व्रत में लोग उगत सूर्य के भी पूजा करेने , डूबत सूर्य के भी उतना ही श्रद्धा से पूजा कईल जाला। एहमें कई तरह के संकेत छिपल बा। इ पूरा दुनिया में भारत के आध्‍यात्‍म‍िक श्रेष्‍ठता के दिखावेला ।

 

एह पूजा में जाति के आधार पर कहीं कवनो भेदभाव नाहीं होला, समाज में सबके बराबरी के देहल गईल बा। सूर्य देवता के बांस के बनल जवने सूप अउर डाल में रखके प्रसाद अर्पित कईल जाला, ओके सामा‍जिक रूप से अत्‍यंत पिछड़ा जाति के लोग बनावेला। ऐसे सामाजिक संदेश एकदम स्‍पष्‍ट ह।

बिहार से छठ पूजा के विशेष संबंध काहें बा?

सूर्य के पूजा के साथ-साथ षष्‍ठी देवी के पूजा के अनूठी परंपरा बिहार के एह सबसे बड़े लोकपर्व में देखल जाला। इहे बात एह पूजा के मामला में प्रदेश के खास बनावेला। बिहार में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित बा। सूर्य पुराण में इहां के देव मंदिर के महिमा के वर्णन मिलेला। इहां सूर्यपुत्र कर्ण के जन्मस्थली ह। अत: स्वाभाविक रूप से एह प्रदेश के लोग के आस्‍था सूर्य देवता में ज्‍यादा होला।

बिहार के देव सूर्य मंदिर के खासियत का ह?

सबसे बड़हन खास इ बा कि मंदिर के मुख्‍य द्वार पश्चिम दिशा के ओर होला, जबकि आम तौर पर सूर्य मंदिर के मुख्‍य द्वार पूर्व दिशा के ओर होला। मान्‍यता ह कि इहां के विशेष सूर्य मंदिर के निर्माण देवता के शिल्‍पी भगवान विश्‍वकर्मा कइले रहलन। स्‍थापत्‍य अउर वास्‍तुकला कला के दृष्‍ट‍िकोण से इहां के सूर्य मंदिर बेजोड़ ह।

छठ पूजा से जुड़ल एगो कथा के

मान्यता ह की देव माता अदिति कईले रहलीन छठ पूजा। एगो कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुर के हाथों देवता हार गईनें, तब देव माता अदिति तेजस्वी पुत्र के प्राप्ति के खातीर देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठ मईया के आराधना कईली। तब प्रसन्न होके छठ मईया ओनके सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होखले के वरदान देहली। एकरे बाद अदिति के पुत्र भईने त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, अउर असुर पर देवता के विजय दिलवने। कहल जाला कि ओह समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर एह धाम के नाम देव हो गईल अउर छठ के चलन भी शुरू हो गईल।

 

हिंदू के सबसे बड़हन पर्व दीपावली के पर्व के माला मानल जाला। पांच दिन तक चले वाला इ पर्व सिर्फ भैयादूज तक ही सीमित नाहीं ह बल्कि इ पर्व छठ  तक चलेला। उत्तर प्रदेश अउर खासकरके बिहार में मनावे जाये वाला इ पर्व बेहद अहम पर्व हवे जवन पूरा देश में धूमधाम से मनावल जाला। छठ केवल एगो पर्व ही नाहीं है बल्कि महापर्व ह जवन कुल चार दिन तक चलेला। नहाय-खाय से लेकेर उगत भगवान सूर्य के अर्घ्य देवे तक चले वाला एह पर्व के अपन एगो ऐतिहासिक महत्व बा।
छठ पर्व कइसे शुरू होला एकरे पीछे कई गो ऐतिहासिक कहानी प्रचलित बा। पुराण में छठ पूजा के पीछे के कहानी राजा प्रियंवद के लेके ह। कहल जाला कि राजा प्रियंवद के कवनो संतान नाहीं रहे तब महर्षि कश्यप पुत्र के प्राप्ति के खातीर यज्ञ करेके प्रियंवद के पत्नी मालिनी के आहुति के बनावल गईल खीर देहने। एहसे उनके पुत्र के प्राप्ति भईल लेकिन इ पुत्र मरल पैदा भइल। प्रियंवद पुत्र के लेके श्मशान गईने अउर पुत्र वियोग में प्राण त्यागे लगने। ओही वक्त भगवान के मानस पुत्री देवसेना प्रकट भईली अउर उ राजा से कहली कि काहें से उ सृष्टि के मूल प्रवृति के छठा अंश से उत्पन्न भईली, एही कारण उ षष्ठी कहल जाली। उ राजा के उनके पूजा करे अउर दूसरें के पूजा के खातीर प्रेरित करे के कहली।

राजा प्रियंवद पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी के व्रत किइने अउर उनके पुत्र के प्राप्ति भईल। कहल जाला इ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी के भईल  अउर तबसे छठ पूजा होला। एह कथा के अलावा एगो कथा राम-सीता जी से भी जुड़ल बा। पौराणिक कथा के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने त रावण वध के पाप से मुक्त होखे के खातीर उ ऋषि-मुनि के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करेन के फैसला लेहने। पूजा के खातीर उ मुग्दल ऋषि के आमंत्रित कईने । मुग्दल ऋषि मां सीता पर गंगा जल छिड़क के पवित्र कईने अउर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि के सुर्यदेव के उपासना करे के आदेश देहने। जसब सीता जी मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहिके छह दिन तक सूर्यदेव भगवान के पूजा कईली।

एगो मान्यता के अनुसार छठ पर्व के शुरुआत महाभारत काल में भईल। एकर शुरुआत सबसे पहिले सूर्यपुत्र कर्ण सूर्य के पूजा करके कईने। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त रहलन अउर उ रोज घंटों कमर तक पानी में खड़ा होके सूर्य के अर्घ्य देते रहने। सूर्य के कृपा से ही उ महान योद्धा बनलें। आज भी छठ में अर्घ्य दान के ई परंपरा प्रचलित ह। छठ पर्व के बारे में एगो कथा अउर भी ह। एह कथा के मुताबिक जब पांडव आपन सारा राजपाठ जुआ में हार गईने तब दौपदी छठ व्रत रखली। एह व्रत से उनकर मनोकामना पूरा भईल अउर पांडव के आपना राजपाठ वापस मिल गईल। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव अउर छठी मईया के संबंध भाई-बहन के ह। एहिसे छठ के मौका पर सूर्य के आराधना फलदायी मानल गईल।

छठ पूजा

लोक आस्था के महापर्व छठ के शुरुआत नहाय-खाय से हो चुकल बा। प्रदेश भर में छठ व्रती आज नहाए खाए से छठ माता के आराधना में लग चुकल बाड़न त दूसरा तरफ छठ पर्व के लेके राज्य भर में श्रद्धालु के श्रद्धा अउर भक्ति देखे के मिल रहल बा। आज से 4 दिन तक चले वाला आस्था के महापर्व छठ के लेके राज्यभर में काफी उत्साह के माहौल बा। मंगलवार के छठ व्रती नहाईले के बाद शुद्ध घी में बनल भोजन ग्रहण करेलन अउर कल खरना के बाद उगत अउर डूबत सूरज के नमस्कार कके भगवान से कुशल मंगल रहले के कामना करेने।त आईं अब हम आपके बताव तानी एह छठ पर्व के लेके कुछ खास बात। आखिरकार काहें उगत अउर डूबत सूरज के नमस्कार कईल जाला अउर पूरा प्रदेश में काहें एह पर्व के आस्था के पर्व मानल जाला।
छठ पर्व हर साल दो बार मनावल जाला जवने में छठी मइया अउर सूरज के पूजा होला। पहिली बार ऐके चैत महीना में मनावल जाला त दूसरी बार कार्तिक मास में। कार्तिक महीना में होखे वाला एह महापर्व के विशेष महत्व बा। अइसन कहल जाला कि हिंदू धर्म में कवनो भी पर्व को शुरुआत स्नान करे के बाद होला अउर एह पर्व के भी शुरुआत नहाय खाय से ही होला। नहाय खाय के दिन सबसे पहिले छठ व्रती पूरा घर के साफ-सफाई कईले के बाद शुद्ध गंगा जल से स्नान करेलीन , फिर साफ कपड़ा पहेन के छठ माता के प्रसाद बनावेलीन जवने में चना के दाल, लौकी के सब्जी अउर बासमती चावल तथा घी अउर सेंधा नमक अहम होला। ऐसे बनल प्रसाद के उ भगवान गणेश अउर सूरज देव के भोग लगावत ग्रहण करेलीन। एकरे बाद पूरा परिवार के एके प्रसाद के रूप में देहल जाला। चार दिन तक चले वाला इ महापर्व में घर में कवनो भी तरह के अशुद्धि नाहीं होला।
सबसे पहिले आपके बता दीं कि 24 अक्टूबर के नहाय खाय के शुरुआत हो चुकल बा जवने में छठ व्रती गंगा जल में स्नान कके शुद्ध कपड़ा पहेनके प्रसाद बनावेल अउर एके भगवान के भोग लगावत पूरा परिवार के प्रसाद के रूप में देहल जाला। नहाय खाय के बाद दूसरा दिन 25 अक्टूबर के शुरू होला खरना जवने में छठ व्रती पूरा दिन निर्जला उपवास रखेलीन अउर शाम के गंगा जल से स्नानकके नया कपड़ा पहिन के मिट्टी के चूल्हा पर प्रसाद बनावेली जवने में शुद्ध दूध में खीर अउर घी में बनल रोटी भगवान के भोग लगावल जाला। फिर हवन कईले के बाद एके प्रसाद के रूप में ग्रहण कईल जाला अउर इ प्रसाद के सब लोग के देहल जाला खासकरके उन लोग के जिनके घर में छठ के व्रत नाहीं होला। एकरे बाद छठ व्रती निर्जला रहके 26 अक्टूबर के डूबत सूरज के नमस्कार करे के खातीर पूरा परिवार के साथ छठ घाट पर जाके लोक गीत के साथ नदी के किनारे फल-फूल अउर पकवान लेके छठी मइया के पूजा करलीन अउर डूबत सूरज के अर्घ्य देलीन। फिर चौथा दिन सुबह 27 अक्टूबर के व्रती उगत सूरज के अर्घ्य देके छठी मइया अउर दीनानाथ से आशीर्वाद मांगलीन। जेकरे बाद उ आपन निर्जला व्रत तोड़ेलीन। एह पर्व के लेके अईसन कहल जाला कि इ लोग के जिंदगी में खुशी अउर उनके आस्था के प्रतीक ह जेके एक साथ पूरा परिवार मिलके मनावेला।

पष्ठी देवी के कहल जाला छठी मइया आपके बता दीं कि एह पर्व के यूं त आस्था के पर्व कहल जाला लेकिन लोग के मन में कई तरह के सवाल खड़ा हो जाला आखिरकार एह महापर्व के नाम छठ काहें पड़ल? के ह छठी मइया? एह पर्व के नाम छठ ह लेकिन ऐमें सूरज के ही काहें उपासना कईल जाला? त आईं आज हम आपके बताव तानी एह पर्व में काहें सूरज के उपासना कईल जाला। अगर पौराणिक ग्रंथों के मानल जाव त श्‍वेताश्‍वतरोपनिषद् में बतावल गईल बा कि परमात्‍मा सृष्‍ट‍ि रचे के खातीर स्‍वयं के दो भाग में बांट देहने जवने में दाहिना भाग में पुरुष अउर बायां भाग में प्रकृति के रूप सामने आईल। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बतावल गईल बा कि सृष्‍ट‍ि की अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के एगो प्रमुख अंश के देवसेना कहल गईल बा। प्रकृति के छठा अंश होखले के कारण एह देवी के एगो प्रचलित नाम षष्‍ठी ह अउर पुराण के अनुसार के सब देवी मनुष्य के रक्षा करेलीन अउर उनके लंबी आयु प्रदान करेलीन।
सूरज देव के अर्घ्य पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हर देवी- देवता के पूजा के खातीर अलग-अलग तिथि निर्धारित कईल गईल बा जवने में गणेश के पूजा चतुर्थी के त विष्णु के पूजा एकादशी के कईल जाला। ओही तरह सूरज के पूजा सप्तमी के कईल जाला। सूर्य सप्‍तमी, रथ सप्‍तमी जईसन शब्‍द से इ स्‍पष्‍ट ह लेकिन छठ में सूर्य के षष्‍ठी के दिन पूजन अनोखी बात ह। सूर्यषष्‍ठी व्रत में ब्रह्म अउर शक्‍त‍ि दोनों के एक साथ पूजा कईल जाला एहिसे छठ व्रत करे वाला के दोनों के पूजा के फल मिलेला, ईहे बात एह पूजा में सबसे खास मानल जाला।
छठ पर्व के वैज्ञानिक दृष्टिकोण

षष्ठी तिथि (छठ) के एगो विशेष खगोलीय परिवर्तन होला, एह समय सूर्य के पराबैगनी किरण (Ultra Violet Rays) पृथ्वी के सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाला एह कारण एकर सम्भावित कुप्रभाव से मानव के यथासम्भव रक्षा करे के सामर्थ्य प्राप्त होला। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीव के रक्षा सम्भव बा। पृथ्वी के जीव के ऐसे बहुत लाभ मिलेला। सूर्य के प्रकाश के साथ उनके पराबैगनी किरण भी चंद्रमा अउर पृथ्वी पर आवेला। सूर्य के प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचेला, त पहिले वायुमंडल मिलेला। वायुमंडल में प्रवेश कईले पर ओके आयन मंडल मिलेला। पराबैगनी किरण के उपयोग कके वायुमंडल आपन ऑक्सीजन तत्त्व के संश्लेषित कके ओके एलोट्रोप ओजोन में बदल देला। एह क्रिया द्वारा सूर्य के पराबैगनी किरण के अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाला। पृथ्वी के सतह पर केवल ओकर नगण्य भाग ही पहुँच पावेला। सामान्य अवस्था में पृथ्वी के सतह पर पहुँचे वाला पराबैगनी किरण के मात्रा मनुष्य या जीव के सहन कईले के सीमा में होला। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्य पर ओकर कवनो विशेष हानिकारक प्रभाव नाहीं पड़ेला, बल्कि ओह धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जालन, जवने से मनुष्य या जीवन के लाभ होला] छठ जईसन खगोलीय स्थिति (चंद्रमा अउर पृथ्वी के भ्रमण तल के सम रेखा के दोनों छोर पर) सूर्य के पराबैगनी किरण के कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होके, पृथ्वी पर फिर सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाला । वायुमंडल के स्तर से आवर्तित होत, सूर्यास्त अउर सूर्योदय के अउर भी सघन हो जाला। ज्योतिषीय गणना के अनुसार ई घटना कार्तिक तथा चैत्र मास के अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आवेला। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होखे के कारण एकर नाम अउर कुछ नाहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखल गईल बा

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