धर्मनगरी गया अउरी तिलकुट

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मकर संक्रांति के दिन तिल खाईल अउरी दान कइल जाला। मानल जाला कि एसे पुण्य मिलेला। तिलकुट से बाजार गमक गईल बा अउरी हर घर मे तिल के लड्डू चाहे गजक बन रहल बा। लेकिन गया के तिलकुट के अलग ही महत्व बा।
गया में तिलकुट बने के शुरुआत कब से भईल ई त ठीक-ठाक नइखे पता लेकिन मानल जाला कि धरम के नगरी गया में आज से करीब डेढ़ सौ साल पहिले तिलकुट बनावे के शुरुआत भईल। गया,यानी भगवान बुद्ध के ज्ञानस्थली अउरी हिन्दू लोग के मोक्षधाम आपन खस्ता अउरी अतिस्वादिष्ट तिलकुट खातिर भी मशहूर बा। इहाँ हाथ से कूट के तिल के मिठाई बनेला ओहीसे एकर नाम तिलकुट पड़ल।
मकर संक्रांति के एक-डेढ़ महिना पहिले से गया के गली अउरी बाजार में तिल कुटला के धम-धम आवाज अउरी भूजल तिल के सोंह खुशबू तैरे लागेला अउरी सब लोग के बता देवेला कि मकर संक्राति आवे वाला बा। गया में तिलकुट के मुख्य मंडी रमना अउरी टिकारी रोड पर लोग खरीदारी खातिर दूर-दूर से इकट्ठा होखे लागेला। त्योहार से एक महीना पहिले से ही तिल के बाजार गरम होखे लागेला।
गया में मिले वाला तिलकुट के स्वाद के कवनो मुकाबला नइखे। इहाँ के तिलकुट के कवनो जोड़ भी नइखे। ईहे वजह बा कि इहाँ निर्मित तिलकुट झारखंड, उतरप्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, महाराष्ट्र सहित पाकिस्तान, बांगलादेश, नेपाल जइसे देश में भी भेजल जाला। गया आए-जाए वाला लोग ईहां के तिलकुट के स्वाद जरूर लेला अउरी अपना दूर-दराज के रिश्तेदार लोग खातिर भी तिलकुट ले जाला।
एह व्यवसाय से जुड़ल लोग बतावेला कि तिल अउरी चीनी से तिलकुट के निमार्ण होला। एकरा खातिर निश्चित मात्रा में तिल अउरी चीनी के मिश्रण के कोयले के आग पर निश्चित समय सीमा तक मिलावल जाला अउरी एक निश्चित समय तक कूटल जाला। एकरा बाद लजीज अउरी जायकेदार खास्ता तिलकुट खाए खातिर तैयार हो जाला ।  मिश्रण अउरी कूटला के प्रक्रिया में तनिको गड़बड़ी होला से स्वाद बिगड़े के डर रहेला ।
तिलकुट के तासिर गर्म होला, एहीसे ठंड के मौसम में एकर मांग बढ़ जाला। तिलकुट आयुर्वेदिक दवा के भी काम करेला। तिलकुट खइला से कब्ज जइसन समस्या ना होला अउरी ई पाचन क्रिया के भी बढावेला। अइसे त पूरा देश में कई जगह पर तिलकुट के व्यवसाय होला, लेकिन गया में निर्मित तिलकुट अउरी ओकर स्वाद के मुकाबला कहीं नइखे।
त आप भी तिलकुट खाईं, खियाईं अउरी त्योहार के मिठास बढांईं।

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