अगर जीवन बा त मौत भी बा। इ चक्र अइसन बा जवन चलत रहेला। हिंदू धर्म में बनारस के पवित्र शहर और शिव के त्रिशूल पर टिकल मानल गइल बा। इहां के मणिकर्णिका घाट के बारे में कहल जाला कि जवन शरीर इहां पर अग्नि के समर्पित कइल जाता उ जन्म मरण के बंधन से पार हो जाला। इहे कारण बा कि बहुत से लोग मणिकर्णिका घाट पर आपन अंतिम संस्कार के इच्छा जतावेलन। काशी के मोक्ष की नगरी भी कहल जाला। मणिकर्णिका घाट अइसन शमशान ह जहां पर चिता के अग्नि कबो ना बुझाला। कहल जाला कि जवन दिन इ घाट पर चिता ना जली ऊ दिन बनारस खातीर प्रलय लेके आई।
मान्यता ह कि औघड़ रूप में शिव इहवां विराजेलन। महादेव चिता के भस्म से श्रृंगार करेलन। इहे से इहां चिता के आग कबो ठंडा ना पड़ेला।
औसतन 30 से 35 चिता रोज इहां जलेला। दाह संस्कार खातीर खाली बनारस से ही ना, बल्कि देश के कोना-कोना से लोग आवेलन। इ घाट के मुक्तिधाम के नाम से भी जानल जाला।